हिंदी लेखिकाओं को 'छिनाल' कहने पर विवाद
विभूति राय की टिप्पणियों पर हिंदी लेखिकाओं ने आपत्ति जताई
साभार बीबीसी दिव्या आर्य
विभूति राय ने 'बेवफाई' पर अपने साक्षात्कार में कुछ हिन्दी लेखिकाओं को 'छिनाल' कहा था. भारत के दो अखबारों में महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय महाविद्यालय के कुलपति और लेखक विभूति नारायण राय की हिंदी लेखिकाओं पर छपी कुछ टिप्पणियों से विवाद पैदा हो गया.
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माँ बनने से डरती हैं महिला पत्रकार
महिला अखबारनवीसों की कहानी एक जैसी है
साभार भड़ास4मीडिया
''...अगर आपको अपना चेहरा दिखाकर या फिर बातों से प्रभावित करने या मक्खन लगाने की कला नहीं आती तो मीडिया जगत आपके लिए नहीं है. अगर आपका कोई गाडफादर नहीं है तो भी मीडिया आपके लिए नहीं है. ऐसे में आप मेरी तरह फांकाकशी करेंगे.
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जनता से दूर हो रहे बड़े अखबार और उनके पत्रकार
चौथे स्तम्भ को भ्रष्टाचार का दीमक लग चुका है
साभार अनिल सिंह भड़ास4मीडिया
: बड़े अखबारों के पत्रकारों की हर पल पैसे पर होती है निगाह : पैसे के लिए खबरों को मैनेज और मेनूपुलेट करते हैं वे : छोटे अखबारों के पत्रकारों को 'खेल' में शामिल करने के लिए बनाते हैं दबाव : 'सुप्रीम न्यूज' की तरफ से बादलपुर में सेमिनार का आयोजन :
दिल्ली आने के बाद पहली बार पत्रकारों के किसी आयोजन में सम्मिलित होने का मौका मिला. रविवार का दिन था, इसलिये समय का कोई बंधन न था. यशवंत जी के साथ मैं भी हो लिया. रास्ते भर सोचता रहा कि बादलपुर (ग्रेटर नोएडा) में पत्रकारों का सम्मेलन है तो काफी कुछ पत्रकारिता पर बातें होंगी.
दिल्ली आने के बाद पहली बार पत्रकारों के किसी आयोजन में सम्मिलित होने का मौका मिला. रविवार का दिन था, इसलिये समय का कोई बंधन न था. यशवंत जी के साथ मैं भी हो लिया. रास्ते भर सोचता रहा कि बादलपुर (ग्रेटर नोएडा) में पत्रकारों का सम्मेलन है तो काफी कुछ पत्रकारिता पर बातें होंगी.
मन में तरह-तरह के विचार आते रहे. मुख्यमंत्री मायावती का गांव देखने की भी उत्सुकता थी. हम बादलपुर पहुंचे तो दस बज चुका था. आश्यर्च हुआ कि आसपास के ही नहीं बल्कि दूरदराज से आये पत्रकार भी यहां मौजूद थे.
सम्मेलन की औपचारिक शुरुआत हुई. सबने अपने-अपने अनुभव सुनाना शुरू किया. सबने ईमानदारी से पत्रकारिता करने के दौरान आने वाली कठिनाइयों को बयान किया. बड़े अखबारों के पत्रकारों के खेल-तमाशे गिनाए. सुनकर लगा कि आखिर क्या हो गया है लोकतंत्र के इस चौथे स्तम्भ को? क्या आम जनता की आवाज उठाने वाले चौथे स्तम्भ को भ्रष्टाचार का दीमक लग चुका है? क्या अपराधियों, नेताओं और अधिकारियों के साथ पत्रकारों का भी एक अलोकतांत्रिक गठजोड़ हो चुका है?
सम्मेलन की औपचारिक शुरुआत हुई. सबने अपने-अपने अनुभव सुनाना शुरू किया. सबने ईमानदारी से पत्रकारिता करने के दौरान आने वाली कठिनाइयों को बयान किया. बड़े अखबारों के पत्रकारों के खेल-तमाशे गिनाए. सुनकर लगा कि आखिर क्या हो गया है लोकतंत्र के इस चौथे स्तम्भ को? क्या आम जनता की आवाज उठाने वाले चौथे स्तम्भ को भ्रष्टाचार का दीमक लग चुका है? क्या अपराधियों, नेताओं और अधिकारियों के साथ पत्रकारों का भी एक अलोकतांत्रिक गठजोड़ हो चुका है?
क्या पत्रकारिता में भी एक अभिजात्य और दलित वर्ग पनप चुका है? क्या संवेदनशील माने जाने वाले पत्रकारों के आंख का पानी मर चुका है? क्या यहां भी साजिशों का खुला खेल चालू हो चुका है? इस बारे में मेरे अपने भी कुछ कटु अनुभव हैं, मगर पत्रकारिता में इस हद तक नंगई और दबंगई हो सकती है, इसका अंदाजा तो इन ग्रामीण, छोटे बैनरों वाले पत्रकारों के बीच आकर ही लगा.
सेमिनार का विषय था- 'जनहित में पत्रकारिता कैसे हो?' सवाल बिल्कुल प्रासंगिक और सम-सामयिक था. पिछले दिनों अखबारों और टीवी चैनलों पर पैसे लेकर खबर छापने और दिखाने का सच सामने आया था. जिस तरह से महात्मा गांधी, गणेश शंकर विद्यार्थी, विष्णुराव पराडकर की मिशन पत्रकारिता को बड़े बड़े मीडिया घरानों के मालिकों ने कमीशन पत्रकारिता में बदल दिया है, उसमें तो चुनौतियां और भी ज्यादा बड़ी हो जाती हैं. जनता की आवाज स्थापित मीडिया ब्रांडों-बैनरों से दूर होते जाने के दौर में संवदेनशीन पत्रकार बन पाना और मुश्किल हो चुका है.
बादलपुर में आकर अच्छा लगा. इन जमीनी पत्रकारों के साथ मिल-बैठकर सुखद अनुभूति हुई. महसूस हुआ कि चलो अभी भी संवेदनशील पत्रकारों की जमात खतम नहीं हुई है. छोटा ही सही, एक कारवां इन परिस्थितियों में बदलाव की खातिर अलख जगाने की कोशिश में लगा हुआ है, अपने प्रयास से, अपने सामर्थ्य से. सुप्रीम न्यूज के संपादक संजय भाटी की कोशिश रंग लाती दिखी.
सेमिनार का विषय था- 'जनहित में पत्रकारिता कैसे हो?' सवाल बिल्कुल प्रासंगिक और सम-सामयिक था. पिछले दिनों अखबारों और टीवी चैनलों पर पैसे लेकर खबर छापने और दिखाने का सच सामने आया था. जिस तरह से महात्मा गांधी, गणेश शंकर विद्यार्थी, विष्णुराव पराडकर की मिशन पत्रकारिता को बड़े बड़े मीडिया घरानों के मालिकों ने कमीशन पत्रकारिता में बदल दिया है, उसमें तो चुनौतियां और भी ज्यादा बड़ी हो जाती हैं. जनता की आवाज स्थापित मीडिया ब्रांडों-बैनरों से दूर होते जाने के दौर में संवदेनशीन पत्रकार बन पाना और मुश्किल हो चुका है.
बादलपुर में आकर अच्छा लगा. इन जमीनी पत्रकारों के साथ मिल-बैठकर सुखद अनुभूति हुई. महसूस हुआ कि चलो अभी भी संवेदनशील पत्रकारों की जमात खतम नहीं हुई है. छोटा ही सही, एक कारवां इन परिस्थितियों में बदलाव की खातिर अलख जगाने की कोशिश में लगा हुआ है, अपने प्रयास से, अपने सामर्थ्य से. सुप्रीम न्यूज के संपादक संजय भाटी की कोशिश रंग लाती दिखी.
उनकी कोशिश जनता की आवाज बनती जा रही है. किसी मुसीबत में फंसे गरीब के एक फोन काल पर दौड़कर उन तक पहुंचने वाले और उस गरीब की समस्या के हल के लिए सिस्टम से भिड़ जाने वाले संजय भाटी ढेर सारे नए पत्रकारों के लिए प्रेरणास्रोत बन चुके हैं.
कई छोटे अखबारों से जुड़े पत्रकार उनकी कारवां के हिस्सा बन चुके हैं. इनकी एकता पत्रकारिता की बड़ी मछलियों को रास नहीं आ रही है. इस एकता की कीमत भी कइयों को चुकानी पड़ी है लेकिन हौसला टूटा नहीं, बल्कि और फौलादी बन चुका है.
सबके अपने अपने अनुभव हैं, सबने बड़े पत्रकारों के दंश झेले हैं, सबने भ्रष्ट सिस्टम से बड़े बैनर के भ्रष्ट पत्रकारों की मिलीभगत के जख्म पाए हैं. इसलिये उनके भीतर एक आग दिखती है, बदलाव की आग, भ्रष्ट व्यवस्था को जलाने की आग.
सुप्रीम न्यूज के संपदक संजय भाटी ने कहा कि अपने को सबसे बड़ा बताने वाले, सच को जिन्दा रखने वाले, बदलाव की बात करने वाले अखबार के मालिकों ने पत्रकारिता को धंधा बना दिया है. सिर्फ पेड न्यूज या पैकेज न्यूज की बात ही नहीं होती.
सुप्रीम न्यूज के संपदक संजय भाटी ने कहा कि अपने को सबसे बड़ा बताने वाले, सच को जिन्दा रखने वाले, बदलाव की बात करने वाले अखबार के मालिकों ने पत्रकारिता को धंधा बना दिया है. सिर्फ पेड न्यूज या पैकेज न्यूज की बात ही नहीं होती.
अब तो खबरें भी मैनेज की जाती हैं. बड़े बड़े अखबारों के पत्रकार अब तो कौन सी खबर छापनी है और कौन सी खबर रोकनी है, इसको मैनेज करके आम लोगों से पैसा उगाहते हैं. इस स्थिति में आम लोगों की आवाज उठाना एक बड़ी चुनौती बन चुकी है. लेकिन हम लोगों के छोटे से प्रयास और एकता ने बड़ी मछलियों की मनमानी पर रोक लगा दी है.
आदर्श न्यूज के संपादक सुनील गुप्ता ने कहा कि जब हमने इस अखबार की शुरुआत की तो बड़े-बड़े बैनर के लोगों ने हमें कई प्रकार से डराने धमकाने की कोशिश की. अपने साथ जोड़ने की कोशिश की ताकि मैं भी उनके इस गंदे धंधे में शामिल होकर साथ दूं, लेकिन मैंने ऐसा करने के बजाय संघर्ष करना ज्यादा जरुरी समझा.
आदर्श न्यूज के संपादक सुनील गुप्ता ने कहा कि जब हमने इस अखबार की शुरुआत की तो बड़े-बड़े बैनर के लोगों ने हमें कई प्रकार से डराने धमकाने की कोशिश की. अपने साथ जोड़ने की कोशिश की ताकि मैं भी उनके इस गंदे धंधे में शामिल होकर साथ दूं, लेकिन मैंने ऐसा करने के बजाय संघर्ष करना ज्यादा जरुरी समझा.
कुछ मित्रों के सहयोग से आज हम इस स्थिति में हैं कि जनता की आवाज निडर होकर उठा सकते हैं. वक्त की जरुरत है कि हम सभी छोटे अखबार के लोग एकजुट होकर जनता की आवाज को बहरे जनप्रतिनिधियों, अधिकारियों और इस भ्रष्ट तंत्र में उनका साथ दे रहे लोगों की कानों तक पहुंचायें.
मुख्य अतिथि, भड़ास4मीडिया के संपादक यशवंत सिंह ने कहा कि आज मीडिया पर बाजार हावी हो चुका है. मालिक के लिये अखबार अब जनता की आवाज नहीं बल्कि अपने मुनाफे को बढ़ाने का धंधा बन चुका है. आज अखबार या न्यूज चैनल आम या गरीब जनता से जुड़ी खबरों पर फोकस नहीं करते बल्कि उनका फोकस उस वर्ग पर होता है, जिसकी पेट और जेब दोनों भरी हुई है.
मुख्य अतिथि, भड़ास4मीडिया के संपादक यशवंत सिंह ने कहा कि आज मीडिया पर बाजार हावी हो चुका है. मालिक के लिये अखबार अब जनता की आवाज नहीं बल्कि अपने मुनाफे को बढ़ाने का धंधा बन चुका है. आज अखबार या न्यूज चैनल आम या गरीब जनता से जुड़ी खबरों पर फोकस नहीं करते बल्कि उनका फोकस उस वर्ग पर होता है, जिसकी पेट और जेब दोनों भरी हुई है.
उन्होंने कहा कि अखबार या चैनल अब इससे सरोकार नहीं रखते कि कहां का किसान फांसी लगा रहा है या किसकी भूख से मौत हो चुकी है. उसे तो बस इससे सरोकार है कि राखी सांवत ने क्या पहना है या करीना कपूर का किसके साथ डेट चल रहा है. पत्रकारों को सेल्स मैनेजर बनाया जा रहा है.
यहां पर अब तक अपराधी, भ्रष्ट नेता, भ्रष्ट अधिकारी और ठेकेदारों का गठजोड़ था किन्तु इसमें अब पत्रकारों का भी गठजोड़ शामिल हो चुका है. यह प्रवृत्ति और स्थिति दोनों ही लोकतंत्र के हित में नही हैं. लेकिन यहां आकर महसूस हुआ कि अभी भी समाज के प्रति जिम्मेदार और जागरुक लोगों की कमी नही है. निश्चय ही यह एक शुरुआत है जो आने वाले समय में इस स्थिति पर लगाम लगाने में सक्षम होगा.
इस दौरान दर्जनों पत्रकारों ने अपने अपने अनुभव सुनाये. कुछ तो पत्रकारिता के दंश से आजिज आकर इस मिशन में सम्मिलित हुए. सबके दिल में वर्तमान पत्रकारिता को लेकर एक टीस थी, एक दर्द था, एक नफरत थी और तो और कुछ कर गुजरने का जज्बा भी था.
इस दौरान दर्जनों पत्रकारों ने अपने अपने अनुभव सुनाये. कुछ तो पत्रकारिता के दंश से आजिज आकर इस मिशन में सम्मिलित हुए. सबके दिल में वर्तमान पत्रकारिता को लेकर एक टीस थी, एक दर्द था, एक नफरत थी और तो और कुछ कर गुजरने का जज्बा भी था.
कुछ ने तो इस पत्रकारिता की कीमत भी चुकाई है. कुछ को व्यवस्था से प्रताड़ना भी झेलनी पड़ी. फिर भी उनकी हिम्मत कम नहीं हुई है बल्कि इस भ्रष्ट तंत्र से टकराने का हौसला और भी बढ़ा है. सबसे बड़ी बात तो यह थी कि सभी पत्रकार अखबारों के संचालन के लिये स्वयं मदद करते हैं, वे इसके लिये अपने मेहनत की कमाई का एक हिस्सा अखबार निकालने के लिय देते हैं.
सम्मेलन में पवन सिंह नागर, राज सिंह, कृपाल सिंह, अनीस अंसारी, शिवपाल भाटी, नवनीत, नरेन्द्र अघाला, रुबी, केपी सिंह, सुन्दरलाल, श्याम सुन्दर, मोनू, किशनपाल, अजब सिंह, बिजेन्द्र जोगी, यूसुफ सैफी, जहीर, कुसुम लता, गीता, आरती, मनजीत मलिक समेत कई अन्य मौजूद रहे. अध्यक्षता ऋषिपाल भाटी एवं संचालन संजय भाटी ने की.
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सम्मेलन में पवन सिंह नागर, राज सिंह, कृपाल सिंह, अनीस अंसारी, शिवपाल भाटी, नवनीत, नरेन्द्र अघाला, रुबी, केपी सिंह, सुन्दरलाल, श्याम सुन्दर, मोनू, किशनपाल, अजब सिंह, बिजेन्द्र जोगी, यूसुफ सैफी, जहीर, कुसुम लता, गीता, आरती, मनजीत मलिक समेत कई अन्य मौजूद रहे. अध्यक्षता ऋषिपाल भाटी एवं संचालन संजय भाटी ने की.
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कैंसर को हराने में जुटे हैं आलोक तोमर
डेटलाइन इंडिया न्यूज एजेंसी का काम जारी रखे हुए हैं
साभार यशवंत भड़ास4मीडिया
प्रख्यात पत्रकार आलोक तोमर इन दिनों कैंसर से लड़ रहे हैं. भ्रष्ट व्यवस्था, भ्रष्ट नेताओं, भ्रष्ट मीडिया दिग्गजों की पोल खोलने वाला यह शख्स, अपनी लेखनी से मानवीय त्रासदियों का खुलासा कर सत्ता-संस्थानों को हिलाने वाला यह आदमी, आजकल अपने मुश्किल दिनों में गुजर रहा है. मानसिक और शारीरिक कष्टों को झेल रहा है. पर हौसला देखिए. कैंसर को मात देने में जुटे आलोक तोमर आज अपने सीएनईबी आफिस पहुंच गए, जहां वे काम करते हैं.
यह तब जबकि उनकी कीमियो थिरेपी शुरू हो गई है. कई घंटे उन्हें बत्रा अस्पताल में रहना पड़ता है. कीमियो के दौर से गुजरने के बाद आलोक का आफिस जाने के लिए तैयार होना और आफिस पहुंच जाना बताता है कि अगर अंदर जिजीविषा हो तो बड़े से बड़े दुख भगाए जा सकते हैं. कष्टों को मात दिया जा सकता है.
आलोक तोमर ने कुछ दिनों पहले जब फेसबुक पर बताया कि उनमें कैंसर के लक्षण के मिले हैं व डाक्टरी जांच-पड़ताल जारी है तो किसी ने भरोसा नहीं किया. सबने ईश्वर से मनाया कि जांच में कुछ न निकले. पैनिक न फैले, इसलिए आलोक की अपुष्ट बीमारी के संबंध में कोई खबर भड़ास4मीडिया पर नहीं प्रकाशित की गई.
आलोक तोमर फेसबुक पर प्रकट होते रहे, अपनी बात कहते रहे. पर लोगों दुवाएं काम न आईं. मेडिकल टेस्ट, डाक्टरों की जांच-पड़ताल में कैंसर की पुष्टि हो गई. प्राथमिक दौर में है कैंसर, यह बताया गया. इलाज से ठीक हो जाएंगे, यह समझाया गया. डाक्टरों ने इलाज शुरू किया.
आलोक तोमर ने कुछ दिनों पहले जब फेसबुक पर बताया कि उनमें कैंसर के लक्षण के मिले हैं व डाक्टरी जांच-पड़ताल जारी है तो किसी ने भरोसा नहीं किया. सबने ईश्वर से मनाया कि जांच में कुछ न निकले. पैनिक न फैले, इसलिए आलोक की अपुष्ट बीमारी के संबंध में कोई खबर भड़ास4मीडिया पर नहीं प्रकाशित की गई.
आलोक तोमर फेसबुक पर प्रकट होते रहे, अपनी बात कहते रहे. पर लोगों दुवाएं काम न आईं. मेडिकल टेस्ट, डाक्टरों की जांच-पड़ताल में कैंसर की पुष्टि हो गई. प्राथमिक दौर में है कैंसर, यह बताया गया. इलाज से ठीक हो जाएंगे, यह समझाया गया. डाक्टरों ने इलाज शुरू किया.
कीमियो, फिर रेडिएशन के जरिए इलाज होना है. कैंसर के इलाज की जटिल प्रक्रिया से वे लोग वाकिफ होंगे जिन्हें या जिनके परिजनों को यह बुरा रोग कभी हुआ होगा. आलोक तोमर के चाहने वाले नहीं चाहते थे कि उनका हीरो कैंसर से पीड़ित हो. पर होनी को कौन टाल सकता है.
कभी चेन स्मोकर और रेगुलर ड्रिंकर रहे आलोक तोमर अपनी आदतों को तौबा कर चुके हैं लेकिन कैंसर ने तौबा नहीं किया. इस रोग के लक्षण मिलने और इलाज शुरू होने के बावजूद आलोक तोमर का हौसला कम नहीं हुआ है. उनकी लेखनी बदस्तूर चल रही है. डेटलाइन इंडिया न्यूज एजेंसी का काम जारी रखे हुए हैं
कभी चेन स्मोकर और रेगुलर ड्रिंकर रहे आलोक तोमर अपनी आदतों को तौबा कर चुके हैं लेकिन कैंसर ने तौबा नहीं किया. इस रोग के लक्षण मिलने और इलाज शुरू होने के बावजूद आलोक तोमर का हौसला कम नहीं हुआ है. उनकी लेखनी बदस्तूर चल रही है. डेटलाइन इंडिया न्यूज एजेंसी का काम जारी रखे हुए हैं
आलोक. सीएनईबी आफिस आज जाकर उन्होंने चैनल के काम को भी प्रभावित नहीं होने दिया. उम्मीद करते हैं कि पत्रकारिता का यह हीरो जल्द ही कैंसर को जड़ से उखाड़कर फेंकेगा और एक बार फिर नौजवान पत्रकारों को मार्गदर्शन देता मिलेगा, कभी फेसबुक के जरिए, कभी फोन पर, कभी मेल से तो कभी सशरीर प्रकट होकर.
फोन पर बातचीत में आलोक तोमर ने पूरी सख्ती से मना किया कि उन्हें कुछ नहीं हुआ है और कोई खबर न चलाना. लेकिन आलोक तोमर के अनुरोध के बावजूद यह खबर हम पब्लिश कर रहे हैं ताकि आलोक को जानने-मानने वाले अपने-अपने स्तर पर उनकी बेहतरी के लिए दुवा कर सकें, कार्य कर सकें, सहयोग कर सकें.
फोन पर बातचीत में आलोक तोमर ने पूरी सख्ती से मना किया कि उन्हें कुछ नहीं हुआ है और कोई खबर न चलाना. लेकिन आलोक तोमर के अनुरोध के बावजूद यह खबर हम पब्लिश कर रहे हैं ताकि आलोक को जानने-मानने वाले अपने-अपने स्तर पर उनकी बेहतरी के लिए दुवा कर सकें, कार्य कर सकें, सहयोग कर सकें.
अगर अमिताभ बच्चन को 'कुली' फिल्म में लगी चोट के बाद पूरा देश स्वस्थ होने की कामना कर सकता है तो हिंदी पत्रकारिता के चर्चित नामों में से एक आलोक तोमर के लिए कम से कम हिंदी पत्रकारिता जगत क्यों नहीं उपर वाले से दुवाएं कर सकता है.
आइए, हम और आप, सभी आलोक जी के जल्द स्वस्थ हो जाने की कामना करें. और कहें, हम सब आपके साथ तन, मन और धन से खड़े हैं.
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आइए, हम और आप, सभी आलोक जी के जल्द स्वस्थ हो जाने की कामना करें. और कहें, हम सब आपके साथ तन, मन और धन से खड़े हैं.
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बच्चू, अभी तू आदर्शवाद से ऊपर नहीं उठा
अखबारों में स्पर्धा होगी, तो संवेदनशीलता पर ही आंच आयेगी
भुवेन्द्र त्यागी साभार :भड़ास4मीडिया
: 'दैनिक जागरण' और 'अमर उजाला' ने मेरठ की पत्रकारिता का परिदृश्य ही बदल दिया था। पहली बार मेरठ के पाठकों को अपने शहर और उसके आसपास की खबरें इतने विस्तार से पढऩे को मिलीं। अपने बीच की हस्तियों का पता चला, जिनके बारे में दिल्ली के अखबारों में कुछ नहीं छपता था। मेरठियों को इन अखबारों की आदत पड़ गयी। इससे इन अखबारों का सर्कुलेशन तेजी से बढ़ा।
फिर शुरू हुई 'सर्कुलेशन वार'। इसकी योजना बड़े स्तर पर बनायी जाती। मध्यम स्तर इसके क्रियान्वयन की देखरेख करता। क्रियान्वित करने का जिम्मा होता निचले स्तर का। इस स्तर के लोग हॉकरों को पटाते कि भइया, हमारा अखबार ऊपर रखना। उच्च स्तर जरूरत पडऩे पर ही सामने आता।
हॉकरों को पार्टियां दी जातीं। उपहार दिये जाते। बड़े डीलरों के सामने यह सब होता, ताकि हॉकर अपने वादे से ना मुकरें। पहले तो हॉकरों को समझ ही नहीं आया कि ये हो क्या रहा है। उन्हें इसका जरा भी अनुभव नहीं था। दिल्ली के अखबारों की 'सैटिंग' डीलर ही कर देते थे। हॉकर उनके हाथों की कठपुतली थे। किसी भी अखबार के सर्कुलेशन की घट-बढ़ का उन्हें कोई फायदा नहीं होता था। पर 'दैनिक जागरण' और 'अमर उजाला' ने खेल ही बदल दिया। बाजी धीरे-धीरे बड़े डीलरों के हाथों से निकलकर हॉकरों के हाथों में आने लगी। इसकी एक वजह हॉकरों की संख्या का बढऩा भी था।
दोनों अखबारों ने नये हॉकर बनाने का चलन शुरू किया। इन नये हॉकरों को सर्कुलेशन के खेल के नये नियम सिखाये गये। हॉकरों में भी गुट बन गये। दोनों अखबारों के धड़े बन गये। कई बार टकराव की नौबत आ जाती। तब डीलर ही बीच-बचाव कराते। दोनों अखबारों के सर्कुलेशन विभाग के लोगों के सामने बेहतर प्रदर्शन करने की चुनौती रहती। इसलिए वे कई बार सीमाएं भी लांघ जाते। तब मामला उच्च स्तर पर सुलझाया जाता। इस स्पर्धा में हॉकरों की बन आयी। वे अपना कमीशन बढ़ाते चले गये। आखिर दोनों अखबारों में शीर्ष स्तर पर फैसला किया गया कि अपने सर्कुलेशन वार में हॉकरों को शामिल ना किया जाये।
कई हॉकर नौनिहाल के दोस्त थे। उनसे नौनिहाल को सर्कुलेशन का सारा दंद-फंद पता चलता रहता था। इसके लिए वे महीने में एक चक्कर टाउन हॉल का लगा देते थे। कई बार मैं भी उनके साथ गया। वहां अंदर की बातें भी पता चल जाती थीं। एक बार एक हॉकर ने बेहद राज की बात बतायी। अमर उजाला के धड़े की जागरण की धड़े से बहस हो गयी। जागरण बोला, 'हमसे दो साल बाद आये हो मेरठ में। इसलिए हमेशा पीछे ही रहोगे सर्कुलेशन में। चाहे जितनी मर्जी कोशिश कर लो।'
जागरण ने जवाब दिया, 'ये पहले-बाद में आने का राग छोड़ो। तुम्हें कई दंगे मिल चुके हैं यहां जमने के लिए। हमें अभी केवल एक दंगा मिला है। दो-तीन दंगे और हो जाने दो। फिर बात करना सर्कुलेशन की।'
'हां-हां, देख लेंगे। दंगे की हमारी रिपोर्टिंग का जवाब है क्या तुम्हारे पास?'
'दिखा देंगे। जवाब भी देंगे। बस, हमें दो-तीन दंगे और मिल जायें।'
हमें ये पता चला, तो काटो खून नहीं। दंगों से पूरा शहर परेशान हो जाता था। जान-माल का नुकसान होता था। महीनों तक गरीबों का बजट बिगड़ा रहता था। रोज मजदूरी करके कमाने-खाने वालों को कर्ज लेना पड़ता था। वे कभी-कभी तो सालों तक उस कर्ज को चुका नहीं पाते थे। और अखबारों के सर्कुलेशन वाले इन्हीं दंगों को अपने लिए फायदेमंद मान रहे थे...
मेरा मूड ऑफ हो गया। नौनिहाल ने कमर पर धप्पा मारते हुए कहा, 'यार तू बहुत जल्दी इमोशनल हो जाता है। ये तो अपने धंधे की बात कर रहे हैं। इसे दिल पर लेने की क्या जरूरत है?'
'दिल पर क्यूं ना लिया जाये? इनकी संवेदनशीलता तो मानो खत्म ही हो गयी है।'
'ठीक है। तुझे अपने विभाग का ही उदाहरण देता हूं। जब किसी दुर्घटना में 50 लोगों के मरने की खबर आती है, तो हम भी कहते हैं- वाह, लीड मिल गयी।'
'हम खबर के महत्व पर प्रतिक्रिया करते हैं इस तरह। पर यह कभी नहीं चाहते कि ऐसी कोई दुर्घटना हो।'
'तो वे भी नहीं चाहते कि कभी दंगे हों। पर उन्हें यह लालसा जरूर रहती है कि दंगे हो गये, तो अखबार का फायदा हो जायेगा।'
'पर लालसा तो रहती है ना?'
'बच्चू, अभी तू आदर्शवाद से ऊपर नहीं उठा है। आदर्शवाद ठीक है। पर और भी बहुत सी चीजें हैं। उनका भी महत्व है। सबके तालमेल से ही बात बनती है।'
'पर मैं तो पत्रकारिता में यह सोचकर आया था कि यह जन-सरोकार का पेशा है। इसमें संवेदनशीलता तो होनी चाहिए।'
'संवेदनशीलता पर धंधा नहीं चलता। धंधा नहीं चले, तो दुनिया नहीं चलती। अखबारों में स्पर्धा होगी, तो संवेदनशीलता पर ही आंच आयेगी। इसलिए इस पर भावुक होने की जरूरत नहीं है। अभी तो तूने कुछ नहीं देखा है। आगे-आगे हालात और बदलेंगे।'
'फिर तो पत्रकारिता मिशन न रहकर पेशा बन जायेगी।'
'बिल्कुल बनेगी। अब अखबार निकालने में बहुत पूंजी लगती है। उसे जुटाने के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ती है। पूंजी जुटाने के बाद उस पर लाभ भी चाहिए। इसलिए बाजार की नब्ज पर हाथ रखना जरूरी है।'
'आप तो पूंजिपतियों की भाषा में बात कर रहे हैं।'
'मैं यथार्थवादी हूं। किसी भ्रम या झूठे आदर्शवाद में नहीं रहता। इसीलिए तुझे एकदम स्पष्टï तरीके से बता रहा हूं कि आदर्शवादी होने के बजाय व्यावहारिक बनना जरूरी है।'
'यह पलायन नहीं है क्या?'
'किससे पलायन और कैसा पलायन?'
'सच्चाई से। अखबार पर आम पाठक बहुत यकीन करता है। क्या ऐसा करके हम उसके भरोसे को नहीं तोड़ेंगे?'
'भरोसे को तोडऩे की भी बात नहीं है। मैं झूठी खबरें छापने की बात तो कर नहीं रहा। खबर की सच्चाई के लिए तो मैं आखिरी सांस तक लडऩे को तैयार हूं। पर कोरे आदर्श की आड़ में यथार्थ से भी तो आंखें नहीं मूंदी जा सकतीं।'
'गुरू, आज पहली बार तुम्हारी बातें मेरे गले नहीं उतर रहीं। तुम्हारा अंदाज कुछ बदला-बदला सा नजर आ रहा है।'
'यह मुद्दा बेहद जटिल है। लंबी बहस मांगता है। फिर कभी इस पर लंबी चर्चा करेंगे।'
नौनिहाल 1980 के दशक में यह सब कह रहे थे। तब मैं उनसे सहमत नहीं था। आज मैं इस बात को सोलह आने सच मानता हूं, पर वे हमारे बीच नहीं हैं...
... और आज आलम ये है कि मीडिया में हर चीज सैलिब्रेट कर ली जाती है। गुजरात के दंगे, उड़ीसा में ईसाइयों पर हमले, सुनामी, मुम्बई में 26 जुलाई 2005 की बाढ़, 11 जुलाई 2006 के ट्रेन विस्फोट, 26 नवम्बर 2008 का आतंकवादी हमला, ऑनर किलिंग, आरुषि हत्याकांड और मॉडल विवेका बाबाजी की आत्महत्या... सूची अंतहीन है ... और इन सबको मीडिया ने सैलिब्रेशन में तब्दील कर लिया।
नौनिहाल ने पत्रकारिता का कोई कोर्स नहीं किया था। उनका कोई गुरु भी नहीं था। फिर भी वे न केवल अच्छे पत्रकार बने, बल्कि दर्जनों युवा पत्रकारों को, सच कहा जाये तो, कलम पकड़कर लिखना भी सिखाया। पर इस सबसे बड़ी खूबी उनमें ये थी कि उनकी दृष्टि बहुत व्यापक और दूरगामी थी।
आज पेड न्यूज का जमाना है। मीडिया बाजार की धुन पर नाच रहा है। झूठे सपने दिखा रहा है। पाठक बेचारे परेशान। दर्शक हैरान। अधर में लटकी है सबकी जान। और मीडिया कभी भी गा उठता है- मेरा भारत महान। नौनिहाल मीडिया के व्यावसायिक रुख के तो समर्थक थे, पर शायद वे मीडिया को बाजार की कीमत पर जनता के असली मुद्दों को छोडऩे से बहुत दुखी होते। उन्होंने यह कल्पना नहीं की होगी कि बीसवीं सदी की दूसरी दहाई तक मीडिया इतना गिर जायेगा!
लेखक भुवेन्द्र त्यागी को नौनिहाल का शिष्य होने का गर्व है. वे नवभारत टाइम्स, मुम्बई में चीफ सब एडिटर पद पर कार्यरत हैं. उनसे संपर्क bhuvtyagi@yahoo.com के जरिए किया जा सकता है.
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फिर शुरू हुई 'सर्कुलेशन वार'। इसकी योजना बड़े स्तर पर बनायी जाती। मध्यम स्तर इसके क्रियान्वयन की देखरेख करता। क्रियान्वित करने का जिम्मा होता निचले स्तर का। इस स्तर के लोग हॉकरों को पटाते कि भइया, हमारा अखबार ऊपर रखना। उच्च स्तर जरूरत पडऩे पर ही सामने आता।
हॉकरों को पार्टियां दी जातीं। उपहार दिये जाते। बड़े डीलरों के सामने यह सब होता, ताकि हॉकर अपने वादे से ना मुकरें। पहले तो हॉकरों को समझ ही नहीं आया कि ये हो क्या रहा है। उन्हें इसका जरा भी अनुभव नहीं था। दिल्ली के अखबारों की 'सैटिंग' डीलर ही कर देते थे। हॉकर उनके हाथों की कठपुतली थे। किसी भी अखबार के सर्कुलेशन की घट-बढ़ का उन्हें कोई फायदा नहीं होता था। पर 'दैनिक जागरण' और 'अमर उजाला' ने खेल ही बदल दिया। बाजी धीरे-धीरे बड़े डीलरों के हाथों से निकलकर हॉकरों के हाथों में आने लगी। इसकी एक वजह हॉकरों की संख्या का बढऩा भी था।
दोनों अखबारों ने नये हॉकर बनाने का चलन शुरू किया। इन नये हॉकरों को सर्कुलेशन के खेल के नये नियम सिखाये गये। हॉकरों में भी गुट बन गये। दोनों अखबारों के धड़े बन गये। कई बार टकराव की नौबत आ जाती। तब डीलर ही बीच-बचाव कराते। दोनों अखबारों के सर्कुलेशन विभाग के लोगों के सामने बेहतर प्रदर्शन करने की चुनौती रहती। इसलिए वे कई बार सीमाएं भी लांघ जाते। तब मामला उच्च स्तर पर सुलझाया जाता। इस स्पर्धा में हॉकरों की बन आयी। वे अपना कमीशन बढ़ाते चले गये। आखिर दोनों अखबारों में शीर्ष स्तर पर फैसला किया गया कि अपने सर्कुलेशन वार में हॉकरों को शामिल ना किया जाये।
कई हॉकर नौनिहाल के दोस्त थे। उनसे नौनिहाल को सर्कुलेशन का सारा दंद-फंद पता चलता रहता था। इसके लिए वे महीने में एक चक्कर टाउन हॉल का लगा देते थे। कई बार मैं भी उनके साथ गया। वहां अंदर की बातें भी पता चल जाती थीं। एक बार एक हॉकर ने बेहद राज की बात बतायी। अमर उजाला के धड़े की जागरण की धड़े से बहस हो गयी। जागरण बोला, 'हमसे दो साल बाद आये हो मेरठ में। इसलिए हमेशा पीछे ही रहोगे सर्कुलेशन में। चाहे जितनी मर्जी कोशिश कर लो।'
जागरण ने जवाब दिया, 'ये पहले-बाद में आने का राग छोड़ो। तुम्हें कई दंगे मिल चुके हैं यहां जमने के लिए। हमें अभी केवल एक दंगा मिला है। दो-तीन दंगे और हो जाने दो। फिर बात करना सर्कुलेशन की।'
'हां-हां, देख लेंगे। दंगे की हमारी रिपोर्टिंग का जवाब है क्या तुम्हारे पास?'
'दिखा देंगे। जवाब भी देंगे। बस, हमें दो-तीन दंगे और मिल जायें।'
हमें ये पता चला, तो काटो खून नहीं। दंगों से पूरा शहर परेशान हो जाता था। जान-माल का नुकसान होता था। महीनों तक गरीबों का बजट बिगड़ा रहता था। रोज मजदूरी करके कमाने-खाने वालों को कर्ज लेना पड़ता था। वे कभी-कभी तो सालों तक उस कर्ज को चुका नहीं पाते थे। और अखबारों के सर्कुलेशन वाले इन्हीं दंगों को अपने लिए फायदेमंद मान रहे थे...
मेरा मूड ऑफ हो गया। नौनिहाल ने कमर पर धप्पा मारते हुए कहा, 'यार तू बहुत जल्दी इमोशनल हो जाता है। ये तो अपने धंधे की बात कर रहे हैं। इसे दिल पर लेने की क्या जरूरत है?'
'दिल पर क्यूं ना लिया जाये? इनकी संवेदनशीलता तो मानो खत्म ही हो गयी है।'
'ठीक है। तुझे अपने विभाग का ही उदाहरण देता हूं। जब किसी दुर्घटना में 50 लोगों के मरने की खबर आती है, तो हम भी कहते हैं- वाह, लीड मिल गयी।'
'हम खबर के महत्व पर प्रतिक्रिया करते हैं इस तरह। पर यह कभी नहीं चाहते कि ऐसी कोई दुर्घटना हो।'
'तो वे भी नहीं चाहते कि कभी दंगे हों। पर उन्हें यह लालसा जरूर रहती है कि दंगे हो गये, तो अखबार का फायदा हो जायेगा।'
'पर लालसा तो रहती है ना?'
'बच्चू, अभी तू आदर्शवाद से ऊपर नहीं उठा है। आदर्शवाद ठीक है। पर और भी बहुत सी चीजें हैं। उनका भी महत्व है। सबके तालमेल से ही बात बनती है।'
'पर मैं तो पत्रकारिता में यह सोचकर आया था कि यह जन-सरोकार का पेशा है। इसमें संवेदनशीलता तो होनी चाहिए।'
'संवेदनशीलता पर धंधा नहीं चलता। धंधा नहीं चले, तो दुनिया नहीं चलती। अखबारों में स्पर्धा होगी, तो संवेदनशीलता पर ही आंच आयेगी। इसलिए इस पर भावुक होने की जरूरत नहीं है। अभी तो तूने कुछ नहीं देखा है। आगे-आगे हालात और बदलेंगे।'
'फिर तो पत्रकारिता मिशन न रहकर पेशा बन जायेगी।'
'बिल्कुल बनेगी। अब अखबार निकालने में बहुत पूंजी लगती है। उसे जुटाने के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ती है। पूंजी जुटाने के बाद उस पर लाभ भी चाहिए। इसलिए बाजार की नब्ज पर हाथ रखना जरूरी है।'
'आप तो पूंजिपतियों की भाषा में बात कर रहे हैं।'
'मैं यथार्थवादी हूं। किसी भ्रम या झूठे आदर्शवाद में नहीं रहता। इसीलिए तुझे एकदम स्पष्टï तरीके से बता रहा हूं कि आदर्शवादी होने के बजाय व्यावहारिक बनना जरूरी है।'
'यह पलायन नहीं है क्या?'
'किससे पलायन और कैसा पलायन?'
'सच्चाई से। अखबार पर आम पाठक बहुत यकीन करता है। क्या ऐसा करके हम उसके भरोसे को नहीं तोड़ेंगे?'
'भरोसे को तोडऩे की भी बात नहीं है। मैं झूठी खबरें छापने की बात तो कर नहीं रहा। खबर की सच्चाई के लिए तो मैं आखिरी सांस तक लडऩे को तैयार हूं। पर कोरे आदर्श की आड़ में यथार्थ से भी तो आंखें नहीं मूंदी जा सकतीं।'
'गुरू, आज पहली बार तुम्हारी बातें मेरे गले नहीं उतर रहीं। तुम्हारा अंदाज कुछ बदला-बदला सा नजर आ रहा है।'
'यह मुद्दा बेहद जटिल है। लंबी बहस मांगता है। फिर कभी इस पर लंबी चर्चा करेंगे।'
नौनिहाल 1980 के दशक में यह सब कह रहे थे। तब मैं उनसे सहमत नहीं था। आज मैं इस बात को सोलह आने सच मानता हूं, पर वे हमारे बीच नहीं हैं...
... और आज आलम ये है कि मीडिया में हर चीज सैलिब्रेट कर ली जाती है। गुजरात के दंगे, उड़ीसा में ईसाइयों पर हमले, सुनामी, मुम्बई में 26 जुलाई 2005 की बाढ़, 11 जुलाई 2006 के ट्रेन विस्फोट, 26 नवम्बर 2008 का आतंकवादी हमला, ऑनर किलिंग, आरुषि हत्याकांड और मॉडल विवेका बाबाजी की आत्महत्या... सूची अंतहीन है ... और इन सबको मीडिया ने सैलिब्रेशन में तब्दील कर लिया।
नौनिहाल ने पत्रकारिता का कोई कोर्स नहीं किया था। उनका कोई गुरु भी नहीं था। फिर भी वे न केवल अच्छे पत्रकार बने, बल्कि दर्जनों युवा पत्रकारों को, सच कहा जाये तो, कलम पकड़कर लिखना भी सिखाया। पर इस सबसे बड़ी खूबी उनमें ये थी कि उनकी दृष्टि बहुत व्यापक और दूरगामी थी।
आज पेड न्यूज का जमाना है। मीडिया बाजार की धुन पर नाच रहा है। झूठे सपने दिखा रहा है। पाठक बेचारे परेशान। दर्शक हैरान। अधर में लटकी है सबकी जान। और मीडिया कभी भी गा उठता है- मेरा भारत महान। नौनिहाल मीडिया के व्यावसायिक रुख के तो समर्थक थे, पर शायद वे मीडिया को बाजार की कीमत पर जनता के असली मुद्दों को छोडऩे से बहुत दुखी होते। उन्होंने यह कल्पना नहीं की होगी कि बीसवीं सदी की दूसरी दहाई तक मीडिया इतना गिर जायेगा!
लेखक भुवेन्द्र त्यागी को नौनिहाल का शिष्य होने का गर्व है. वे नवभारत टाइम्स, मुम्बई में चीफ सब एडिटर पद पर कार्यरत हैं. उनसे संपर्क bhuvtyagi@yahoo.com के जरिए किया जा सकता है.
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जागरण का न्यूज रूम चैनलों के सामान इनपुट-आउटपुट में बंटा
:प्रादेशिक व सिटी रिपोर्टिंग टीम का जो प्रभारी होगा वह इनपुट एडिटर कहा जाएगा
खबरें लाने वाले इनपुट हेड के अधीन होंगे: खबरें संपादित करने वाले व पेज बनाने वाले आउटपुट के हिस्से : कुशल कोठियाल उत्तराखंड का स्टेट हेड घोषित किए जाने की सूचना : दैनिक जागरण ने भी अब न्यूज चैनलों वाले सिस्टम को अपना लिया है. न्यूज रूम में दो विभाग होंगे. इनपुट और आउटपुट. खबरें लाने वाले लोग इनपुट में. खबरें संपादित कर पेजीनेशन करने वाले लोग आउटपुट में. इस सिस्टम को लागू करने की कवायद दैनिक जागरण में जोरों पर है.
इसके चलते प्रादेशिक व सिटी रिपोर्टिंग टीम का जो प्रभारी होगा वह इनपुट एडिटर कहा जाएगा. सभी डेस्कों का जो इंचार्ज होगा, वह आउटपुट एडिटर कहलाएगा. मानेसर में जागरण के वरिष्ठों की पिछले दिनों हुई बैठक में इनपुट-आउटपुट सिस्टम की जल्द से जल्द लागू करने पर जोर दिया गया. मेरठ यूनिट की बात करें तो यहां आउटपुट हेड मनोज झा को बना दिया गया है जो अभी तक प्रादेशिक प्रभारी हुआ करते थे. इनपुट हेड अवधेश माहेश्वरी को बनाए जाने की खबर है. देहरादून से सूचना है कि देहरादून यूनिट के संपादक कुशल कोठियाल को स्टेट हेड बना दिया गया है.
मानेसर में हुई बैठक में कुशल कोठियाल को हल्द्वानी यूनिट की बीमारी दूर करने का दायित्व सौंपा गया है. सूत्रों के मुताबिक हल्द्वानी यूनिट पूरे ग्रुप में रेटिंग के मामले में 32वें नंबर पर है और इसे टाप टेन में लाने का जिम्मा कुशल कोठियाल को सौंपा गया है. एक तरह से कुशल कोठियाल को हल्द्वानी यूनिट का प्रभार सौंप दिया गया है. चर्चा है कि देहरादून यूनिट का प्रभारी ओंकार सिंह को घोषित किया जा सकता है जिन्हें कुछ महीने पहले ही मेरठ से देहरादून भेजा गया है और वे वहां जनरल डेस्क संभाल रहे हैं.
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इसके चलते प्रादेशिक व सिटी रिपोर्टिंग टीम का जो प्रभारी होगा वह इनपुट एडिटर कहा जाएगा. सभी डेस्कों का जो इंचार्ज होगा, वह आउटपुट एडिटर कहलाएगा. मानेसर में जागरण के वरिष्ठों की पिछले दिनों हुई बैठक में इनपुट-आउटपुट सिस्टम की जल्द से जल्द लागू करने पर जोर दिया गया. मेरठ यूनिट की बात करें तो यहां आउटपुट हेड मनोज झा को बना दिया गया है जो अभी तक प्रादेशिक प्रभारी हुआ करते थे. इनपुट हेड अवधेश माहेश्वरी को बनाए जाने की खबर है. देहरादून से सूचना है कि देहरादून यूनिट के संपादक कुशल कोठियाल को स्टेट हेड बना दिया गया है.
मानेसर में हुई बैठक में कुशल कोठियाल को हल्द्वानी यूनिट की बीमारी दूर करने का दायित्व सौंपा गया है. सूत्रों के मुताबिक हल्द्वानी यूनिट पूरे ग्रुप में रेटिंग के मामले में 32वें नंबर पर है और इसे टाप टेन में लाने का जिम्मा कुशल कोठियाल को सौंपा गया है. एक तरह से कुशल कोठियाल को हल्द्वानी यूनिट का प्रभार सौंप दिया गया है. चर्चा है कि देहरादून यूनिट का प्रभारी ओंकार सिंह को घोषित किया जा सकता है जिन्हें कुछ महीने पहले ही मेरठ से देहरादून भेजा गया है और वे वहां जनरल डेस्क संभाल रहे हैं.
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पत्रकार बन वसूली करने वालों का मुंह हुआ काला
महिला ने चप्पलों से पीटा
sabhaar भड़ास4मीडिया
मेरठ : खुद को पत्रकार बता एक पार्षद के यहां वसूली करने पहुंचे दो युवकों की जमकर पिटाई की गई और थाने पर भी मुंह काला कर पीटा गया। पीडि़त एक महिला ने भी उनकी चप्पलों से धुनाई की। उनका एक साथी भागने में सफल रहा। दोनों के खिलाफ मुकदमा दर्ज करा दिया गया है।
इन युवकों के नाम आमिल पुत्र इरफान निवासी जैदी फार्म और वरुण कौशिक पुत्र मदन मोहन शर्मा हैं। दोनों ने खुद को कथित रूप से एक स्थानीय न्यूज चैनल से जुड़ा बताया। वार्ड 32 से पार्षद साबुन गोदाम निवासी मुकेश सिंघल को पिछले कई दिनों से पंकज अग्रवाल नाम का युवक फोन कर रहा था।
मुकेश प्रॉपर्टी डीलिंग का काम करते हैं। बकौल मुकेश पंकज खुद को एक स्थानीय न्यूज चैनल का सिटी चीफ बताते हुए उन्हें धमका रहा था कि अगर नगर निगम के ठेकों के काम चाहिए तो उन्हें हर माह पांच हजार रुपये देने होंगे।
मुकेश प्रॉपर्टी डीलिंग का काम करते हैं। बकौल मुकेश पंकज खुद को एक स्थानीय न्यूज चैनल का सिटी चीफ बताते हुए उन्हें धमका रहा था कि अगर नगर निगम के ठेकों के काम चाहिए तो उन्हें हर माह पांच हजार रुपये देने होंगे।
अगर पैसा नहीं दिया तो वे चैनल पर न्यूज चलाकर उनकी छवि खराब कर देंगे और उन्हें निगम से कोई काम नहीं मिलेगा। पार्षद ने उन्हें बहाने से बुधवार को लेन देन की बावत वार्ता के लिए हरि मंडप के सामने अपने साबुन गोदाम स्थित कार्यालय पर बुला लिया। पंकज अग्रवाल के अलावा आमिल और वरुण वहां पहुंच गए और बातचीत करने लगे।
अंतत: पांच हजार की बजाय दो हजार में मामला पट गया और तय हुआ कि हर माह यह पैसा दे दिया जाएगा। इस पूरी बातचीत को पार्षद ने गुपचुप तरीके से कैमरे में रिकार्ड करा लिया। इसी बीच पार्षद के साथी मनोज शर्मा, संजीव त्यागी, सुधीर शर्मा, अनुराग मिश्रा आ गए और आमिल और वरुण को दबोच लिया जबकि पंकज भागने में सफल हो गया। दोनों की कमरे में जमकर पिटाई की गई। वहां पहुंचे अन्य लोगों ने भी हाथ साफ किये। बाद में दोनों को टीपी नगर थाने लाया गया और वहां पर मुंह काला कर उनकी जमकर पिटाई की गई।
महिला ने चप्पलों से पीटा : यही तीनों युवक खुद को पत्रकार बताकर चंद्रलोक निवासी अलका गोयल पत्नी टीसी गोयल को मकान खाली करने के लिए धमका रहे थे। तीनों ने सीधे घर पहुंचकर तो धमकाया ही, पंकज ने महिला के पुत्र मोहित को फोन भी किया था कि अगर मकान खाली नहीं किया तो जान से मार दिया जायेगा।
अंतत: पांच हजार की बजाय दो हजार में मामला पट गया और तय हुआ कि हर माह यह पैसा दे दिया जाएगा। इस पूरी बातचीत को पार्षद ने गुपचुप तरीके से कैमरे में रिकार्ड करा लिया। इसी बीच पार्षद के साथी मनोज शर्मा, संजीव त्यागी, सुधीर शर्मा, अनुराग मिश्रा आ गए और आमिल और वरुण को दबोच लिया जबकि पंकज भागने में सफल हो गया। दोनों की कमरे में जमकर पिटाई की गई। वहां पहुंचे अन्य लोगों ने भी हाथ साफ किये। बाद में दोनों को टीपी नगर थाने लाया गया और वहां पर मुंह काला कर उनकी जमकर पिटाई की गई।
महिला ने चप्पलों से पीटा : यही तीनों युवक खुद को पत्रकार बताकर चंद्रलोक निवासी अलका गोयल पत्नी टीसी गोयल को मकान खाली करने के लिए धमका रहे थे। तीनों ने सीधे घर पहुंचकर तो धमकाया ही, पंकज ने महिला के पुत्र मोहित को फोन भी किया था कि अगर मकान खाली नहीं किया तो जान से मार दिया जायेगा।
महिला ने इस बावत टीपीनगर थाने पर तहरीर दी थी। जिस वक्त दोनों की थाने पर मुंह काला कर पिटाई हो रही थी तभी महिला ने उन्हें पहचान लिया और उसने भी चप्पलों से उनकी जमकर खबर ली। पार्षद मुकेश सिंघल की तहरीर पर मुकदमा दर्ज कर लिया गया है। (साभार : दैनिक जागरण)
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वेब पर उपलब्ध हुआ 'राष्ट्रीय सहारा' अखबार
ई-पेपर और ई-मैग्जीन लांच : दैनिक जागरण, हिंदुस्तान व अमर उजाला आदि हिंदी समाचार पत्रों के बाद हिन्दी दैनिक राष्ट्रीय सहारा ने भी ई दुनिया से कदमताल करते हुए अपना ई पेपर शुरू कर दिया है. 1 जुलाई का राष्ट्रीय सहारा प्रिंट के साथ ई-पेपर पर भी जारी हुआ है.
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ऐसे चित्र मीडिया में कभी नहीं छपे
युद्धभूमि में भी शवों के साथ ऐसा व्यवहार देखने-सुनने को नहीं मिलता
साभार ; गिरीश मिश्र -भड़ास फॉर मीडिया
: हममें-उनमें फर्क होना ही चाहिए : पिछली छह अप्रैल को दंतेवाड़ा के चिंतलनार में जब 76 सुरक्षाकर्मियों की नृशंस हत्या माओवादियों ने की थी, तो देशभर में इसकी जबरदस्त निन्दा हुई थी. यह घात लगाकर किया गया नियोजित हमला था. इस हमले में लगभग आधा दर्जन सुरक्षाकर्मी जिंदा बचे थे.
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आम लोगों की मीडिया तक पहुंच के लिए वेबसाइट
पहले चरण में दिल्ली..नोएडा के मीडिया संस्थानों की जानकारी
नयी दिल्ली, 28 जून :भाषा: आम लोगों की मीडिया तक सीधी पहुंच बनाने और मीडियाकर्मियों में आपसी सहयोग एवं उनकी समस्याओं की जानकारी लोगों तक पहुंचाने के उद्देश्य से एक वेबसाइट शुरू की गयी है।
सांसद जयप्रकाश अग्रवाल ने इंद्रप्रस्थ प्रेस क्लब आफ इंडिया द्वारा तैयार वेबसाइट ‘‘ आईपीक्बलआफइंडिया डाट काम’’ का आज संसद भवन परिसर में उद्घाटन किया।
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सांसद जयप्रकाश अग्रवाल ने इंद्रप्रस्थ प्रेस क्लब आफ इंडिया द्वारा तैयार वेबसाइट ‘‘ आईपीक्बलआफइंडिया डाट काम’’ का आज संसद भवन परिसर में उद्घाटन किया।
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दूरदर्शन की दक्षिणा से शुरू हुआ था इंडिया टीवी
रजत शर्मा पर बड़े उपकार हैं अरुण जेटली के
साभार : आलोक तोमर भड़ास4मीडिया
दूरदर्शन की दक्षिणा से शुरू हुआ था इंडिया टीवी : एक टीवी चैनल स्थापित करने में करोड़ों रुपए लगते हैं और उसे चलाने में भी करोड़ों रुपये हर साल लगते हैं। दिल्ली में एक ऐसा टीवी चैनल है जिनका मालिक कश्मीरी गेट के एक अपेक्षाकृत गरीब परिवार में पैदा हुए थे।
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राम जेठमलानी ने दीपक चौरसिया को भगाया!
तुम अनएज्युकेटेड हो... अंग्रेजी नहीं जानते... बदतमीज हो... गेट आउट..
साभार : भड़ास4मीडिया
: जेठमलानी अपनी सनकमिजाजी के लिये कुख्यात हैं : आश्चर्यजनक है कि पूरी घटना पर चौरसिया ने भी मौन साध रखा है : ''...तुम मीडिया वालों को कांग्रेस ने खरीद रखा है... तुम अनएज्युकेटेड हो... अंग्रेजी नहीं जानते... बदतमीज हो... गेट आउट... निकल जाओ यहाँ से!'' ये अशिष्ट, आक्रामक शब्द हैं भाजपा के नवनिर्वाचित राज्यसभा सदस्य, जाने-माने ज्येष्ठ वकील राम जेठमलानी के। जेठमलानी ने मीडिया को कांग्रेस का जरखरीद गुलाम व अशिक्षित बताया।
यह सब उल्टा-सीधा कहते हुए जेठमलानी ने स्टार न्यूज चैनल के वरिष्ठ संपादकीय सहयोगी दीपक चौरसिया को अपने घर से निकाल बाहर कर दिया। जेठमलानी यह टिप्पणी करने से नहीं चूके कि तुम मेरी मेहमाननवाजी का बेजा इस्तेमाल कर रहे हो। चौरसिया चैनल के एक कार्यक्रम के लिये रामजेठमलानी का साक्षात्कार लेने पूर्व निर्धारित समय पर गये थे। जेठमलानी अपनी सनकमिजाजी के लिये कुख्यात हैं।
चौरसिया के पहले अन्य कुछ चैनलों के कार्यक्रम में भी वे बदतमीजी से पेश आ चुके हैं। सनकमिजाजी ऐसी कि 1990 में जब विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार से भाजपा ने समर्थन वापस ले लिया था और चंद्रशेखर कांग्रेस की मदद से सरकार बनाने की जुगत कर रहे थे (जो बाद में बनी भी) तब विरोध स्वरूप जेठमलानी चंद्रशेखर के घर के बाहर धरने पर बैठ गये थे। कहते हैं कि धरने पर बैठे जेठमलानी की कुछ बातों से चंद्रशेखर उग्र हो उठे थे। उन्होंने इशारा किया और फिर उनके एक समर्थक पहलवान नेता ने रामजेठमलानी की पिटाई कर डाली थी।
लगता है जेठमलानी की आदतें गई नहीं हैं, सो उन्होंने दीपक चौरसिया के जरिये मीडिया को निशाने पर ले लिया। कांग्रेस सरकार को भ्रष्ट, चोर, बेईमान बतानेवाले जेठमलानी को भारतीय जनता पार्टी सहन करती रहे, हमें आपत्ति नहीं! किंतु जब वे मीडिया के साथ राज ठाकरे या शिवसैनिकों की तरह बदतमीजी ने पेश आते हैं, तब उन्हें उनकी हैसियत बताई जानी चाहिए।
यह सब उल्टा-सीधा कहते हुए जेठमलानी ने स्टार न्यूज चैनल के वरिष्ठ संपादकीय सहयोगी दीपक चौरसिया को अपने घर से निकाल बाहर कर दिया। जेठमलानी यह टिप्पणी करने से नहीं चूके कि तुम मेरी मेहमाननवाजी का बेजा इस्तेमाल कर रहे हो। चौरसिया चैनल के एक कार्यक्रम के लिये रामजेठमलानी का साक्षात्कार लेने पूर्व निर्धारित समय पर गये थे। जेठमलानी अपनी सनकमिजाजी के लिये कुख्यात हैं।
चौरसिया के पहले अन्य कुछ चैनलों के कार्यक्रम में भी वे बदतमीजी से पेश आ चुके हैं। सनकमिजाजी ऐसी कि 1990 में जब विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार से भाजपा ने समर्थन वापस ले लिया था और चंद्रशेखर कांग्रेस की मदद से सरकार बनाने की जुगत कर रहे थे (जो बाद में बनी भी) तब विरोध स्वरूप जेठमलानी चंद्रशेखर के घर के बाहर धरने पर बैठ गये थे। कहते हैं कि धरने पर बैठे जेठमलानी की कुछ बातों से चंद्रशेखर उग्र हो उठे थे। उन्होंने इशारा किया और फिर उनके एक समर्थक पहलवान नेता ने रामजेठमलानी की पिटाई कर डाली थी।
लगता है जेठमलानी की आदतें गई नहीं हैं, सो उन्होंने दीपक चौरसिया के जरिये मीडिया को निशाने पर ले लिया। कांग्रेस सरकार को भ्रष्ट, चोर, बेईमान बतानेवाले जेठमलानी को भारतीय जनता पार्टी सहन करती रहे, हमें आपत्ति नहीं! किंतु जब वे मीडिया के साथ राज ठाकरे या शिवसैनिकों की तरह बदतमीजी ने पेश आते हैं, तब उन्हें उनकी हैसियत बताई जानी चाहिए।
फिर दीपक चौरसिया और उनका चैनल स्टार न्यूज जेठमलानी की बदतमीजी पर तटस्थ क्यों बने रहे? अन्य मौकों पर अपने ऊपर कोई आक्रमण का हमेशा प्रतिवाद करनेवाला मीडिया जेठमलानी मुद्दे पर शांत क्यों? अगर यह रवैया उपेक्षा की श्रेष्ठ नीति की तहत अपनाया गया है, तब भी आसानी से यह किसी के गले से उतरनेवाली नहीं।
जेठमलानी के द्वारा चौरसिया का अपमान किसी बंद कमरे में नहीं हुआ था। बल्कि सब कुछ कैमरे के सामने और लाखों लोगों ने पूरी घटना को टेलीविजन पर देखा भी। ऐसे में घटना की उपेक्षा सहज नहीं। ऐसे ''मौन'' को मीडिया ही स्वीकारोक्ति निरूपित करता आया है।
जेठमलानी के द्वारा चौरसिया का अपमान किसी बंद कमरे में नहीं हुआ था। बल्कि सब कुछ कैमरे के सामने और लाखों लोगों ने पूरी घटना को टेलीविजन पर देखा भी। ऐसे में घटना की उपेक्षा सहज नहीं। ऐसे ''मौन'' को मीडिया ही स्वीकारोक्ति निरूपित करता आया है।
तो क्या राम जेठमलानी के आरोप को स्टार न्यूज ने स्वीकार कर लिया है? विश्वास नहीं होता कि जेठमलानी के निहायत घटिया शब्दों को स्टार न्यूज जैसा प्रतिष्ठित चैनल स्वीकार कर ले। दीपक चौरसिया की पहचान एक निडर, लब्धप्रतिष्ठित पत्रकार के रूप में है। सटीक राजनीतिक विश्लेषण के लिये वे पहचाने जाते हैं। यह आश्चर्यजनक है कि पूरी घटना पर चौरसिया ने भी मौन साध रखा है।
जेठमलानी जब उनके प्रश्न पर आपा खो बदतमीजी पर उतर आये थे, तब शांत रहकर चौरसिया ने अपनी शिष्टता का परिचय दिया था, यह तो ठीक है। किंतु जब जेठमलानी ने पूरे मीडिया को बिकाऊ बेईमान, अशिष्ट, गैरजिम्मेदार और अशिक्षित करार दिया, तब घटना के बाद किसी अन्य कार्यक्र्रम या मंच से विरोध तो होना ही चाहिए था। मैं पहले बता चुका हूं कि उपेक्षा की नीति यहां स्वीकार नहीं की जा सकती।
जेठमलानी जब उनके प्रश्न पर आपा खो बदतमीजी पर उतर आये थे, तब शांत रहकर चौरसिया ने अपनी शिष्टता का परिचय दिया था, यह तो ठीक है। किंतु जब जेठमलानी ने पूरे मीडिया को बिकाऊ बेईमान, अशिष्ट, गैरजिम्मेदार और अशिक्षित करार दिया, तब घटना के बाद किसी अन्य कार्यक्र्रम या मंच से विरोध तो होना ही चाहिए था। मैं पहले बता चुका हूं कि उपेक्षा की नीति यहां स्वीकार नहीं की जा सकती।
जिन लाखों दर्शकों ने जेठमलानी को चौरसिया और मीडिया पर आरोप लगाते, गरजते-बरसते देखा, वे भी मीडिया के इस मौन पर अचंभित हैं। इस मौन को स्वीकारोक्ति माननेवालों की भी कमी नहीं है। कोई करेगा इनका प्रतिकार!
लेखक एसएन विनोद प्रतिष्ठित पत्रकार हैं. इन दिनों हिंदी दैनिक 1857 के प्रधान संपादक के रूप में नागपुर में कार्यरत हैं
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लेखक एसएन विनोद प्रतिष्ठित पत्रकार हैं. इन दिनों हिंदी दैनिक 1857 के प्रधान संपादक के रूप में नागपुर में कार्यरत हैं
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भास्कर के मालिकों का झगड़ा और उलझा
आरएनआई के कुछ लोग कंपनी डीबी कार्प के शुभचिंतक हैं
साभार : भड़ास4मीडिया
जमशेदपुर, मुजफ्फरपुर, धनबाद में भी एक ने डिक्लयरेशन के लिए आवेदन तो दूसरे ने आब्जेक्शन फाइल किया : पटना व रांची के जिलाधिकारियों ने डीबी कार्प की तरफ से जवाब मिलने पर आरएनआई के पास मैटर भेजा : पटना और रांची से दैनिक भास्कर लांच करने के लिए भास्कर के मालिकों में कानूनी लड़ाई नए मोड़ पर पहुंच गई है.
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टीवी संपादकों को गिरिजा व्यास ने दिए सुझाव
आनर किलिंग' शब्द के इस्तेमाल से परहेज करें
राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्षा गिरिजा व्यास से आज टीवी के दिग्गजों ने मुलाकात की, ब्राडकास्ट एडिटर्स एसोसिएशन (बीईए) और न्यूज ब्राडकास्टर्स एसोसिएशन (एनबीए) के बैनर तले. गिरिजा व्यास ने दो-तीन सुझाव संपादकों को दिए. इसमें महिलाओं से जुड़े कानून के बारे में लोगों को एजुकेट व अवेयर करना और 'आनर किलिंग' शब्द के इस्तेमाल से परहेज करना. गिरिजा व्यास का कहना था कि 'आनर किलिंग' शब्द से हत्यारोपियों का महिमामंडन होता लगता है. बैठक के बाद बीईए और एनबीए की तरफ से जो प्रेस विज्ञप्ति जारी की गई, वो इस प्रकार है...
The Chairperson of the National Commission of Women, Ms. Girija Vyas lauded the efforts of electronic news media towards self –regulation as she strongly felt that self-regulation was the only way to make media more purposeful.
With a view to interacting with leaders of various institutions, the Broadcast Editors’ Association (BEA) and News Broadcasters Association (NBA) jointly held a discussion with the National Commission for Women (NCW) on Wednesday, at the behest of the latter.
Ms. Vyas appreciated the role of the two bodies and suggested that media should also educate the masses about the laws so that the victims could seek legal recourse. The two broadcast media organizations readily agreed to this suggestion.
NBA and BEA also welcomed another suggestion from the Chairperson that a joint interaction with other statutory bodies like the National Human Rights Commssion (NHRC) and the Law Commission should be held in near future for a better understanding of emerging social issues.
The Chairperson also drew the attention of the editors towards use of phrase “honor killing” which is in the vogue. Her contention was that, inadvertently though, the use of this phrase glorified the killers.
NBA Secretary General Annie Joseph and BEA President Shazi Zaman assured the NCW chief that media would remain alive to the cause of women. BEA General Secretary N K Singh said , as the question of killings of women marrying out of their caste or gotra was more a product of parochial thinking, a right social messaging hand in hand with stringent laws will work as an effective deterrent.
BEA executive members and editors who spoke on the occasion were Milind Khandekar, Satish K Singh, Deepak Chaurasia, Vinod Kapri, Prabal Pratap Singh, Sanjay Bragta and Vasindra Mishra.
Shazi Zaman, President
N K Singh, General Secretary
Broadcast Editor’ Association (BEA)
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The Chairperson of the National Commission of Women, Ms. Girija Vyas lauded the efforts of electronic news media towards self –regulation as she strongly felt that self-regulation was the only way to make media more purposeful.
With a view to interacting with leaders of various institutions, the Broadcast Editors’ Association (BEA) and News Broadcasters Association (NBA) jointly held a discussion with the National Commission for Women (NCW) on Wednesday, at the behest of the latter.
Ms. Vyas appreciated the role of the two bodies and suggested that media should also educate the masses about the laws so that the victims could seek legal recourse. The two broadcast media organizations readily agreed to this suggestion.
NBA and BEA also welcomed another suggestion from the Chairperson that a joint interaction with other statutory bodies like the National Human Rights Commssion (NHRC) and the Law Commission should be held in near future for a better understanding of emerging social issues.
The Chairperson also drew the attention of the editors towards use of phrase “honor killing” which is in the vogue. Her contention was that, inadvertently though, the use of this phrase glorified the killers.
NBA Secretary General Annie Joseph and BEA President Shazi Zaman assured the NCW chief that media would remain alive to the cause of women. BEA General Secretary N K Singh said , as the question of killings of women marrying out of their caste or gotra was more a product of parochial thinking, a right social messaging hand in hand with stringent laws will work as an effective deterrent.
BEA executive members and editors who spoke on the occasion were Milind Khandekar, Satish K Singh, Deepak Chaurasia, Vinod Kapri, Prabal Pratap Singh, Sanjay Bragta and Vasindra Mishra.
Shazi Zaman, President
N K Singh, General Secretary
Broadcast Editor’ Association (BEA)
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सहारा पीछे, साधना आगे
sabhaar : भड़ास4मीडिया
डिस्ट्रीब्यूशन कमजोर होने के कारण बाजी साधना के हाथ लगी
तेइसवें हफ्ते की टीआरपी में साधना न्यूज मध्य प्रदेश-छत्तीसगढ़ ने अपने प्रतिद्वंदियों को पछाड़ दिया है। इस हफ्ते में भोपाल गैस कांड का फैसला आया था। इस बड़े फैसले को प्रत्येक चैनल अपने-अपने हिसाब से दिखाकर-परोसकर टीआरपी बढ़ाने में जुटे रहे।
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....अच्छे कंटेंट से बिजनेस और ब्रांड खुद ब खुद खड़ा हो जाता है
पढ़ें और पढ़ायें अखबार’, दो रुपये में प्रभात खबर.
साभार इ भड़ास4मीडिया
प्रभात खबर आजकल के ब्रांड गुरुओं और संपादकों के लिए नजीर है. कोई काम कैसे सुव्यवस्थित, तार्किक व जनपक्षधर तरीके से किया जाता है, वह सीखना-समझना हो तो प्रभात खबर को देखना चाहिए. याद रखिए, सब कुछ करने के बावजूद अगर आपके काम, अंदाज और नतीजे में जनपक्षधरता नहीं है
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Labels: jounalism, Khabar, News-Views, Prabhat
'पेड न्यूज' के धंधेबाज धरे जाएंगे
चुनाव आयोग का पेड न्यूज की घटनाओं पर कड़ा रुख
साभार I भड़ास4मीडिया
चुनाव आयोग ने कुछ राज्यों में होने वाले चुनावों में अधिकारियों से पेड न्यूज पर कड़ी नजर रखने और जरूरत पड़ने पर नोटिस जारी करने व कार्रवाई करने को कहा : चुनाव आयोग ने पैसे लेकर खबर छापने (पेड न्यूज) की घटनाओं पर कड़ा रुख अपनाते हुए पेड न्यूज के धंधेबाजों की शिनाख्त करने और उन्हें धर-दबोचने को कहा है.
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Labels: Election Commision, jounalism, Paid News
चौथी दुनिया लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में
चौथी दुनिया आम आदमी के अधिकार की लड़ाई की ताकत
विनम्र गौरव-बोध के साथ आपको सूचित करते हुए हुए हर्ष हो रहा है कि साप्ताहिक समाचार पत्र चौथी दुनिया को लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में शामिल किया गया है. लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स की तरफ से जारी नेशनल रिकॉर्ड 2010 प्रमाण-पत्र में चौथी दुनिया को देश का सबसे पहला
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Labels: Award, jounalism, Limca, News-Views
सरकार ऐसा आदेश- जारी नहीं कर सकती जिससे मीडिया पर दबाव पड़े
मान्यता को समाप्त किये जाने वाले आदेश पर रोक
साभार : राष्ट्रीय सहारा
पत्रकारों की मान्यता खत्म नहीं कर सकती सरकार : हाईकोर्ट की लखनऊ खण्डपीठ ने एक आदेश में कहा है कि प्रजातंत्र में मीडिया का महत्वपूर्ण योगदान है, मीडिया चौथा स्तम्भ है इसलिए सरकार ऐसा आदेश-शासनादेश जारी नहीं कर सकती जिससे मीडिया पर दबाव पड़े या मीडिया के अस्तित्व पर खतरा हो।
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Labels: CourtDecisions, jounalism, News-Views
पीटीआई को पत्रकारों की जरूरत
उम्र तीस साल से ज्यादा न हो.
समाचार एजेंसी प्रेस ट्रस्ट आफ इंडिया को अंग्रेजी सर्विस के लिए पत्रकारों की जरूरत है. जिन पदों पर भर्तियां हो रही हैं, वे हैं कापी एडिर्स / री-राइट पर्सन्स. न्यूज कोआर्डिनेटर्स और प्रोबेशनरी जर्नलिस्ट्स. कापी एडिटर्स / री-राइट पर्सन्स के लिए अंग्रेजी मीडिया का पांच साल का अनुभव चाहिए.
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