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वो जनसत्ता के दिन, ये आई-नेक्स्ट के दिन

बाजार की सबसे बड़ी ताकत भी हिन्दी के अखबार
 मनोज कुमार: साभार :  भड़ास4मीडिया
हिंदी भाषा और हिंदी अखबार : कोई कहे कि हिन्दी अखबार हिन्दी से दूर हो रहे हैं तो आप चौंकेंगे। मैं भी चौंका था जब एक दर्जन समाचार पत्रों का छह महीने तक अध्ययन करता रहा। हिन्दी अखबारों द्वारा हिन्दी का मटियामेट इन छह महीनों में नहीं हुआ बल्कि इसकी शुरुआत तो डेढ़ दशक पहले शुरू हो गयी थी।

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गरीबी और बेरोजगारी से कहीं ज्यादा मारती है इश्क-मोहब्बत

 जेंडर फोरम की तर्ज पर बाल बजट बनाए जाने की  सिफारिश
ओड़ीशा में नक्सली हमले पर वीर अर्जुन की पहली सुर्खी है-फिर नक्सलियों का तांडव। बकौल राष्ट्रीय सहारा इधर वार्ता का न्यौता, उधर उड़ीसा लाल। राजस्थान पत्रिका ने लिखा है - गृहमंत्री के लालगढ़ दौरे से पहले फिर जमीन लाल।

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कलमाडी और खेल संघों ने तानी गिल पर बंदूक

कसाब हिंदुस्तान का गुनाहगार
कसाब को देश के खिलाफ जंग का दोषी पाये जाना दैनिक जागरण की सुर्खी है। बकौल राजस्थान पत्रिका-हत्यारा कसाब हिंदुस्तान का गुनाहगार। नवभारत टाइम्स ने लिखा है-ऐतिहासिक फैसले के बाद खुशी, राहत और सखत सजा की उम्मीद।

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