पत्थरमार युद्ध में राम दल की विजय की अनूठी परम्परा
Bhopal:Thursday, October 6, 2011
मध्यप्रदेश के विदिशा जिले के कालादेव में अनूठी परम्परा से दशहरा मनाया गया। देश में बुराईयों के प्रतीक रावण का दहन कर दशहरा मनाने की परम्परा है लेकिन कालादेव में अनूठे ढंग से यह त्योहार मनाने की परम्परा है।
मध्यप्रदेश के विदिशा जिले के कालादेव में अनूठी परम्परा से दशहरा मनाया गया। देश में बुराईयों के प्रतीक रावण का दहन कर दशहरा मनाने की परम्परा है लेकिन कालादेव में अनूठे ढंग से यह त्योहार मनाने की परम्परा है।
इस गांव में रावण की एक विशाल स्थाई प्रतिमा दशहरा मैदान में स्थित है जिसके समक्ष पत्थर युद्ध होता है। दशहरा पर पत्थर युद्ध की इस परम्परा के लिए लोग काफी पहले से पत्थर एकत्रित करते है। विशेष बात यह कि कालादेव में रावण का दहन नहीं किया जाता।
संस्कृति मंत्री श्री लक्ष्मीकांत शर्मा हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी अपने चुनाव क्षेत्र के कालादेव में इस अनूठे आयोजन में शामिल होकर परम्परागत रूप से दशहरा मनाया। श्री शर्मा ने राम और लक्ष्मण के प्रतीकों की पूजा-अर्चना की और लोगों को दशहरे की बधाई दी।
विदिशा जिले की लटेरी तहसील में स्थित कालादेव गांव में हर दशहरे पर एक ऐसी घटना होती है जिसे चमत्कार ही कहा जा सकता है। इस गांव में रावण की एक विशाल प्रतिमा है इसके सामने एक ध्वज लगाया जाता है।
संस्कृति मंत्री श्री लक्ष्मीकांत शर्मा हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी अपने चुनाव क्षेत्र के कालादेव में इस अनूठे आयोजन में शामिल होकर परम्परागत रूप से दशहरा मनाया। श्री शर्मा ने राम और लक्ष्मण के प्रतीकों की पूजा-अर्चना की और लोगों को दशहरे की बधाई दी।
विदिशा जिले की लटेरी तहसील में स्थित कालादेव गांव में हर दशहरे पर एक ऐसी घटना होती है जिसे चमत्कार ही कहा जा सकता है। इस गांव में रावण की एक विशाल प्रतिमा है इसके सामने एक ध्वज लगाया जाता है।
रावण दलों द्वारा पत्थरों की बौछार के बीच राम दल इस ध्वज को छूने का प्रयास करता है। एक तरफ कालादेव के लोग रामदल के रूप में आगे बढते हुए यह ध्वज छूने का प्रयास करते हैं, तो दूसरी ओर रावण दल के लोग उन पर पत्थर फेकते हैं।
यह राम-रावण युद्ध का प्रतीक है। लेकिन चमत्कार की बात यह कि यह पत्थर रामदल के लोगों को नहीं लगते। इससे भी बडी बात यह है कि यदि कोई व्यक्ति कालादेव का निवासी न हो और रामदल में शामिल हो तो उसे पत्थर लग जाते है लेकिन कालादेव गांव के किसी भी व्यक्ति को यह पत्थर नहीं लगते ।
राम और रावण दलों के बीच पत्थर युद्ध देखने के लिए अंचल के लगभग 20 हजार लोग उपस्थित थे। पत्थर युद्ध के बाद राम-लक्ष्मण के प्रतीकों की पूजा अर्चना की गई और रामलीला का मंचन किया गया।
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