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आचार्यश्री के शताब्दी महोत्सव का शुभारम्भ होगा कलश-यात्रा से


देश-विदेश की सैकडों महिलायें जुटी कलश रचना में
24 हजार कलशों को धारण करेंगी पीत-वस्त्रधारी महिलायें
18 हजार अन्य प्रस्तुतियां भी होंगी आकर्षण का केन्द्र
उडन-खटोले से होगी जगह-जगह पुष्पों की वर्षा
हरिद्वार, 11अक्टूबर।आदि ग्रंथों में समुद्र मंथन से निकलने वाले रत्नों में अमृत कलश को प्रमुखता से व्याख्यातित किया गया है। जिसकी प्राप्ति के लिए विपरीत प्रवृत्तियों के देवासुर एकता के सूत्र में बंधे थे, ताकि अमृत पान करने का सौभाग्य उन्हें मिल सके। मान्यताओं के अनुसार अमृत पान से अमृतत्व की प्राप्ति होती है। इसी कारण वैदिक विधान में कलश की प्रमुखता रहती है।
देवताओं का आह्वान करने लिए कलश-यात्रा का आयोजन अध्यात्मिक अनुष्ठानों के शुभारम्भ में किया जाता है। युगऋषि पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य की जन्म शताब्दी पर आयोजित होने वाले महोत्सव में पहले दिन 24 हजार पीतवस्त्रधारी बहिनों के द्वारा विशाल कलश यात्रा निकाली जायेगी। इस यात्रा की तैयारियों के लिए शांतिकुंज में कलश रचना का विशाल आयोजन किया जा रहा है, जिसमें देश-विदेश की सैकडों बहिनों की टोलियां योगदान कर रहीं है।
गायत्री तीर्थ शांतिकुंज के प्रवचन हाल की पहली मंजिल पर मिट्टी के कलशों को अमृत कलश के रूप में सजाया-संवारा जा रहा है। पीले रंग की पुताई करने के लिए 10-10 बहिनों के 30 टोलियां 5 स्थानों पर कार्य कर रहीं हैं। पीला रंग सात्विकता का प्रतीक एवं सूर्य से शक्ति के आकर्षण का उपाय है। पुताई के बाद उन पर गायत्री महामंत्र अंकित किया जा रहा है, जो सन्मार्ग पर बढाने की ईश-वंदना है। सत्-विचारों की प्राप्ति का सीधा मार्ग है। इस कार्य में 18 टोलियां लगीं हैं।
कलश पर स्वास्तिक के चिन्हों को बनाने के लिए 12 टोलियां लग गई हैं। यह चिन्ह धनात्मक गति को परिभाषित करता हुआ क्लाक वाइज सिस्टम पर रनिंग पोजीशन की स्थापना को दिखाता है जबकि मध्य में बनाये जाने वाले चार बिन्दुओं को दिशाओं से ऊर्जा संदोहन के केन्द्रीकरण का अभिनव प्रयोग माना गया है। स्थानीय स्तर पर हो रहे कार्य के अलावा गुजरात, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, झारखण्ड तथा बिहार प्रांतो में भी कलश रचना का क्रम चल रहा है, जहां से 30 अक्टूबर तक सभी कलश हरिद्वार पहुंच जायेंगे।
कलश-यात्रा के विराट आयोजन की मुख्य धारा लालजी वाला में स्थापित की जा रही 1551 कुण्डीय यज्ञशाला से प्रारम्भ होगी जिसमें भीमगौडा पर शांतिकुंज से तथा देवपुरा चौराहे पर बीएचईएल से आने वाली सह-धाराओं का विलय होगा। इस यात्रा का परिपथ लालजी वाला, वीआईपी घाट, पंथ द्वीप, भीमगौडा पुल, भीमगौडा, अपर रोड, हर की पौडी, मुख्य बाजार, रेलवे स्टेशन, देवपुरा चौराहा, शंकराचार्य चौक, चण्डी चौक से अस्थाई पुल पार कर वापिस लालजी वाला स्थित यज्ञशाला तक बनाया गया है।
इस आयोजन में 24 हजार कलशों को उतनी ही बहिनों के द्वारा वरण किया जायेगा,11 हजार युग शिल्पियों की टोलियां, 108 संगीत दल, 1551 ज्ञान-पट्टधारी, 1008 बटुक बृह्मचारी, 108 शंख-ध्वनि वादक, 2001 ढपली-ध्वनि वादिनी, 501 मोटर साइकिल चालक, 501 साइकिल चालक, 108 वाहनों पर युगऋषि के जीवन-दर्शन पर केन्द्रित भव्य झांकियां, देश-विदेश के 51 सांस्कृतिक दलों द्वारा लोक संस्कृति के दिग्दर्शन कराने वाले प्रदर्शन, 16 संस्कारों की जीवन्त झांकियां, 51 ज्ञान रथ सहित शहनाई, बांसुरी, मृदंग आदि के वादक दलों के अलावा ऊंट, घोडा, हाथी, बग्धी भी शामिल रहेंगे।
 सुरक्षा के लिए 11 हजार युग सैनिकों को तैनात किया जायेगा। यात्रा में शामिल गायत्री साधकों के ऊपर उडन खटोले से कई स्थानों पर पुष्प वर्षा, मार्ग में जल अभिसिंचन और यज्ञ नगर में दिव्य अभिनन्दन किया जायेगा। कलश यात्रा के प्रभारी श्याम बिहारी दुवे ने बताया कि विराट कलश यात्रा में भागीदारी करने के लिए अभी तक 2.5 लाख लोगों का पंजीकरण किया जा चुका है, जो कुंभ नगरी में आयोजित कलश यात्रा में पहुंच कर यहां छलकी अमृत की बूंदों की ऊर्जा से परिपूर्ण हो सकें।


देशी-विदेशी सभी अभिभूत हैं दिव्य अनुभूतियों से
इनर्जी हाउस बना शांतिकुंज
शांतिकुंज में कलश रचना कर रहीं श्रद्धालु महिलायें दिव्य अनुभूतियों से अभिभूत हो रहीं हैं। कनाडा से आई क्ला इरे ने बताया कि मिट्टी के घडों को कलश के रूप में परिवर्तित करने के दौरान कडी मेहनत करना पड रहा है। घंटों एक ही आसन पर बैठना पडता है, जिसकी आदत नहीं है, परन्तु कभी न किये जाने वाले कार्य को करने के बाद थकान के स्थान पर नई ऊर्जा मिलती है। समाधि स्थल सजल श्रद्धा-प्रखर प्रज्ञा पर आंख बंदकर बैठते ही मन मयूर बनकर नाचने लगता है। नया उत्साह मिलता है और काम करने की इच्छा जागृत होती है। यहां की सेवा करके मुझे आनन्द का भण्डार मिल गया है।
छत्तीसगढ के आदिवासी क्षेत्र से आई रोमा साहू ने बताया कि कलश रचना के दौरान कई बार रोमांच का अनुभव हुआ है। कडी मेहनत के बाद भी थकान नहीं होती। सुबह अखण्ड दीप के दर्शन मात्र से ही पूरे दिन के काम करने की क्षमता प्राप्त होती है। घर परिवार की चिंता और याद बिलकुल नहीं सताती। पीला रंग रंगते-रंगते अब तो खुद भी बासंती हो गई हूं।
स्वास्तिक का चिंह अंकित करने वाली मध्य प्रदेश की दाल मिल की मालिकिन हेमलता तिवारी ने कहा कि साज-सज्जा में लगी लम्बे समय तक काम करते रहने के कारण मेरे अंदर का अहम् पूरी तरह से समाप्त हो गया है, जिससे मै स्वयं को सहज सहसूस करने लगी हूं। यह परिवर्तन मेरे अंदर चैतन्य क्षेत्र में ध्यान के दौरान हुआ।
सात समुन्दर पार से ध्यान, धर्म और धारणा पर आधारित जिज्ञासायें समेटे शांतिकुंज पहुंची आउडरेई ने बताया कि यह कार्य शुरू में जरूर अटपट लगा, परन्तु अब तो इसकी आदत पड गई है। जिस दिन काम नहीं करती हूं तो लगता है कि कुछ किया ही नहीं है। खालीपन का यह अहसास कलश रचना में सक्रिय होते ही जाता रहता है। विशिष्ठ ऊर्जा का संचार होने लगता है, यह जरूर आचार्यश्री की कारण चेतना का ही प्रभाव है।
चैतन्य क्षेत्र और अखण्ड दीप को ऊर्जा प्रदान करने वाले शक्ति स्थल के रूप में सभी ने एक मत से परिभाषित किया। सेवा कार्य में लगी सभी महिलाओं की एक जैसी ही प्रतिक्रियायें रहीं। सामान्य जीवन में थका देने वाला कार्य, महोत्सव के दौरान इनर्जी हाउस बना हुआ है, जरूरत है तो केवल पूरे मनोयोग से जुडने की।

1 comments:

Anonymous said...

Ravi Kant Choudhary, Bandra,Mumbai, Congratulation and best Compliments for such nice and grand program.

 
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