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क्या भारत आज भी गुलाम है.......?

अंग्रेज भारत को छोड् कर जा चुके हैं। लेकिन अंग्रेजी अभी भारत के कुलीन वर्ग को बुरी तरह जकड़े हुए है। यही कुलीन वर्ग भारत की आजादी के बाद से कमोबेश देश की सत्ता पर काबिज बना हुआ है। सत्ता मे आने वाली पार्टियों भले ही बदलती रहतीं हों पर सत्ता का रिमोट इसी वर्ग के हाथ मे बना रहता है।

इस वर्ग का आचार विचार हमेशा से ही आम लोगों को यह अहसास कराते रहे हैं कि यह वर्ग आज भी फिरंगी शासकों को ही अपना आदर्श मान रहा है। यह ऐसा कोई भी काम नहीं कर रहा है जिससे यह इसकी दूरिया फिरंगियों से बढ़ती व भारत की आम जनता के बीच से घटती नजर आने लगें।
यह वर्ग खूब जानता है कि आम जनता से संवाद करने के लिए कौन सी भाषा बोलना चाहिए व उसे गुमराह करने के लिए कौन सी भाषा ? तभी तो वह जब वोट मांगने जाता है तो जनता से हिन्दी या देशी भाषा मे बात करता है। लेकिन जब सत्ता मे आ जाता है तो अंग्रेजी बोलने लगता है।
यह वर्ग कभी नहीं चाहता है कि आम जनता को सत्ता की बारीकियां समझ मे आएं। वह नहीं चाहता है कि हिन्दी या अन्य देशी भाषाईयों की सत्ता मे भागेदारी बढ़े। यह वर्ग ऐसा क्यों चाहता है इस की वजह समझना भी कोई मुश्किल नहीं है।
हमेशा सत्ता पर काबिज रहेने की महात्वकांक्षा पालने वाला यह वर्ग भलिभांति जानता है कि हिन्दी या अन्य भाषा बोलने वालों मे उससे कहीं ज्यादा काबिल लोग मौजूद हैं। अगर अंग्रेजी भाषा की बाधा खत्म कर दी गई तो उनके सत्ता से बेदखल होने मे ज्यादा वक्त नहीं लगेगा। सो हरदम वे देश की उच्च शिक्षा व सरकार के काम काज में अंग्रेजी भाषा का ही दबदबा बनाए रखना चाहते हैं। यह भी एक तरह का साम्राज्यवाद ही है।
भारत अंग्रेजों से तो आजाद हो गया है पर उनकी जगह अंग्रेजी परस्त स्वार्थी भारतीयों ने ली है। जो फिरंगियों से भी घटिया सरकार चला रहे हैं। इनसे मुक्ति पाने के लिए अगर देश मे कहीं एक और संघर्ष चलाने की जरूरत महसूस की जा रही हो तो कोई आश्चर्य नहीं है? लोगों के मन मे यह सवाल भी उठ रहा हो कि क्या भारत आज भी गुलाम है ? तो भी आश्चर्य नहीं होना चाहिए ।

2 comments:

अजित गुप्ता का कोना said...

स्‍वयं को विशिष्‍ट प्रदर्शित करने की चाहत है, अंग्रेजी। हम आम नहीं हैं हम खास हैं यह भावना प्रत्‍येक इंसान में रहती है। लेकिन दुर्भाग्‍य यह है कि आज हिन्‍दी को अंग्रेजी के साथ-साथ क्षेत्रीय भाषाओं से भी संघर्ष करना पड़ रहा है। लोग राष्‍ट्रीय भाषा के रूप में अंग्रेजी को अपना रहे हैं लेकिन हिन्‍दी से दुराव करते हैं। बढिया पोस्‍ट, ऐसे ही विचारों से एक दिन परिवर्तन होगा।

बालसुब्रमण्यम लक्ष्मीनारायण said...

बहुत सही विश्लेषण किया है आपने। आज हमारे देश में लोकतंत्र नाम भर के लिए है। बाकी सब कुछ विशिष्ट वर्गों के लिए ही हो रहा है। यह विशिष्टता-राज कायम रखने में अंग्रेजी अहम भूमिका निभा रही है। लोग इसे जितनी जल्दी समझें और परिवर्तन की मांग करें उतना अच्छा।

देश में यह मांग उठनी चाहिए कि आईआईटी, आईआईएम आदी आला शिक्षण संस्थाओं का शिक्षण माध्यम तुरंत हिंदी और अन्य भारतीय भाषाएं बनें।

इसी तरह विश्वविद्यालयों में ऊंचे दर्जे के कोर्सों का शिक्षण अनिवार्य रूप से हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं में दी जाए। अंग्रेजी केवल एक विदेशी भाषा के रूप में सीखी जाए। अंग्रेजी के साथ चीनी, अरबी, स्पेनी, फ्रांसीसी, जर्मन आदि अन्य विदेशी भाषाओं के शिक्षण की व्यवस्था भी हो।

नौकरियों के लिए अंग्रेजी की आवश्यकता समाप्त की जाए।

सभी सरकारी कामकाज हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं में किया जाए।

डा. रामविलास शर्मा ने इस विषय पर काफी सोचा विचारा है। उन्होंने भारत से अंग्रेजी को समाप्त करने के लिए बहुत ही कारगर रणनीति सुझाई है। उनका कहना है कि अंग्रेजी हटाने का काम सबसे पहले केंद्र से करना होगा। तभी राज्य स्तरों पर अंग्रेजी हटाई जा सकेगी। उनकी भाषा और समाज, भारत की भाषा समस्या, आदि किताबों में इसके बारे में विस्तार से चर्चा है। ये किताबें राजकमल प्रकाशन, दिल्ली और वाणी प्रकाशन दिल्ली से निकली हैं। इन्हें पढ़कर और पोस्ट लिखें।

 
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