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जागरूक होता मतदाता लोकतंत्र के लिए अच्छा संकेत ...

देश के पांच राज्यों मे हुए विधानसभा चुनावों के नतीजे जितने चौंकाने वाले रहे हैं उतने ही तसल्ली देने वाले भी रहे हैं। जिस तरह मप्र, दिल्ली व छत्तीसगढ़ राज्यों में मतदाताओं ने कांग्रेस के भ्रष्टाचार के अभियान को नकारते हुए भाजपा सरकारों के विकास कार्यों को सराहा है। मप्र मे अपना वजूद तलाशते बसपा व सपा जैसे क्षेत्रीय दलों द्वारा प्रचारित गए जातीय वोट बैंक के समीकरणों को भी जनता ने एक सिरे से नकार दिया है। इसी वजह से प्रदेश मे बसपा को 7 व भाजश को 5 सीटें हीं मिलीं हैं।जबकि सपा को प्रदेश में मात्र एक सीट मिली है।
इसी प्रकार दिल्ली एवं छत्तीसगढ़ मे बसपा को दो-दो व राजस्थान मे 6 सीटें ही मिलीं हैं। यह एक तरह से भारत मे जागरूक होते मतदाता के रूप मे परिपक्व होते लोकतंत्र के भी लक्षण लग रहे हें।
जनता को दिल्ली मे शीला दीक्षित के विकास बात पसंद आई तो छत्तीसगढ़ की शालीन सरकार रास आई और मप्र के शिवराज सिंह पर तो जनता काफी पहले ही रीझने के संकेत देने शुरू कर दिया था।।
मप्र मे तो खास तौर से महिला मतदाता ने शिवराज सिंह को पूरी मन से वोटें दी है। लाड़ली लक्ष्मी, मुख्यमंत्री कन्यादान योजना व जननी सुरक्षा जैसी योजनाओं का लाभ गांव के स्तर तक महिलाओं को मिला। जिसकी वजह से उनको अपना निर्णय लेने मे किसी की मदद की जरूरत नहीं पड़ी।
मिजोरम और राजस्थान मे मे जनता ने सत्ता मे बदलाव किया। उसको नहीं लगा कि वर्तमान सरकारें विकास और जनकल्याण के नाम पर उसकी कसौटी पर खरी उतर पा रहीं हैं। इस बार के चुनावों मे सभी पार्टियों के अच्छे अच्छे दिग्गजों को जनता ने धूल चटा दी है। जो इस बात का भी संकेत है कि अब गद्दी पर वो ही रह सकता है जो विकास का वादा करने के साथ साथ उसकी जमीनी स्तर पर फलीभूत भी करा सकता हो। इन नतीजों को देखकर कर कम से कम इतना तो कहा ही जा सकता है कि जागरूक होती जनता के रूप मे लोकतंत्र अब परिपक्व होने लगा है।

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