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मीडिया के लिए नए दिशा-निर्देश जारी

मुंबई हमले की कवरेज़ को लेकर भारतीय टीवी चैनलों को आलोचना का सामना करना पड़ा था। मुंबई हमलों के दौरान मीडिया की आलोचनाओं के बाद न्यूज़ ब्राडकॉस्टर्स एसोसिएशन (एनबीए) ने ऐसी घटनाओं की कवरेज के लिए नए दिशानिर्देश जारी किए हैं.एनबीए के अनुसार किसी भी संकटकालीन स्थिति की रिपोर्टिंग में जनहित को ध्यान में रखना चाहिए और रिपोर्टिंग तथ्यात्मक और सही होनी चाहिए.
एनबीए के प्रमुख पूर्व मुख्य न्यायाधीश जस्टिस जेएस वर्मा ने कहा कि किसी भी ऐसे मामले की लाइव रिपोर्टिंग नहीं होनी चाहिए जिसमें लोग बंधक हों.
इतना ही नहीं जो लोग बंधक हैं उनके बारे में भी किसी तरह की जानकारी देने पर पाबंदी लगा दी गई है. साथ ही यह भी कहा कि ऐसी कोई भी बात न कही जाए जिससे लगे कि बंधकों के लिए सहानुभूति जुटाई जा रही है.
पत्रकारों को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि ऐसे मामलों में मीडिया को पुलिस कार्रवाई से जुड़ी जानकारियां नहीं देनी चाहिए और साथ ही किसी भी सुरक्षा अधिकारी या बंधक से संपर्क नहीं करना चाहिए.
इतना ही नहीं टीवी चैनलों से कहा गया है कि किसी मामले की पुरानी तस्वीर दिखाए जाने पर उसमें तारीख लिखी होनी चाहिए.
संयम की ज़रूरत
एनबीए का कहना था कि संकट के समय मीडिया को ख़ुद ही कवरेज पर अंकुश लगाना चाहिए और संयम बरतना चाहिए क्योंकि यही सबसे बेहतर रास्ता है. चरमपंथी हमले और कार्रवाई में मारे गए लोगों के नाम सम्मान से लिए जाने और उनके फुटेज न दिखाने की भी सिफ़ारिश एनबीए ने की है.
एनबीए ने कहा है कि विचलित कर देने वाले फुटेज और फ़ोटो को दिखाने में भी सावधानी बरती जाए.
उल्लेखनीय है कि मुंबई हमलों के दौरान जिस तरह से मीडिया ने इस घटना की कवरेज की, उसकी कड़ी आलोचना हुई है. किसी भी ऐसे मामले की लाइव रिपोर्टिंग नहीं की जाएगी जिसमें लोग बंधक हों
जेएस वर्मा, अध्यक्ष एनबीए
यहाँ तक कि राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड ने कहा कि नरीमन हाउस पर कमांडो जब हेलीकॉप्टर से उतर रहे थे तो इसे लाइव टेलीविज़न पर दिखाया गया जिससे चरमपंथियों को कमांडो ऑपरेशन का पता चल गया और कम से कम एक कमांडो की इस कारण मौत हो गई.
इतना ही नहीं ताज होटल और ओबेराय की कवरेज के दौरान भी मीडिया ने जिस तरह से तस्वीरें सीधे सीधे दिखाईं उसकी भी आलोचना हुई है.
एनबीए समाचार प्रसारित करने वाले संस्थानों का एक संगठन है जहां किसी भी प्रकार के विवाद की सुनवाई होती है. इसका अध्यक्ष एक वरिष्ठ न्यायाधीश होते हैं जबकि बाकी आठ सदस्य बहुमत से नामित किए जाते हैं.
इसमें अख़बारों के संपादक भी हो सकते हैं या चैनलों से जुड़े लोग भी..

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