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डाव कैमिकल्स को भी मिली एंडरसन जैसी सुविधा

कार्बाइड परिसर में बिखरा 18 हजार टन रासायनिक कचरा
दुनिया की सबसे बड़ी औद्योगिक त्रासदी के बाद भी केन्द्र व राज्य सरकार को कोई नसीहत नहीं मिली। दोनों सरकारों ने यूका के विलय के बाद बनी कंपनी डाव कैमिकल्स की खातिरदारी की और यहां तक कि यूका के जहरीले कचरे की सफाई के लिए भी उसे जिम्मेदार नहीं बनाया गया।
इस कंपनी को 2005 में भोपाल की सीजेएम कोर्ट में तलब किया गया, लेकिन कंपनी ने हाईकोर्ट से स्टे प्राप्त कर लिया। जिसके खिलाफ अदालती लड़ाई लड़ने की इच्छा शक्ति भी नहीं दिखाई गई।

कार्बाइड परिसर में बिखरा 18 हजार टन रासायनिक कचरा आसपास के पानी को भी जहरीला बना चुका है। इस मामले में राज्य सरकार ने कभी भी डाव कैमिकल्स पर निशाना नहीं साधा। केन्द्र सरकार के सहयोग से इस कचरे को पहले अंकलेश्वर में ठिकाने लगाने के प्रयास हुए और बाद में जब गुजरात सरकार सुप्रीम कोर्ट पहुंची तो मामला पीथमपुर में तब्दील कर दिया गया। यहां तक कि दो साल पहले आधी रात में चार ट्रक रसायनों की शिफ्टिंग कर दी गई। खास बात यह थी कि सरकार इसे जहरीला रसायन या मानव जीवन के लिए घातक रसायन नहीं मानती। प्रदेश के गैस राहत मंत्री बाबूृलाल गौर कई बार कह चुके हैं कि परिसर में सिर्फ 390 टन रसायन है, जिसकी पैकिंग 2005 में कराई गई थी। सरकार डाव कैमिकल्स को सफाई के लिए जिम्मेदार न मानकर खुद इस कार्य को करने की तरकीब खोजती रही। प्रदूषण निवारण मंडल और राजधानी परियोजना के संयुक्त उपक्रम से गुजरात के एक ट्रांसपोर्टर से इन रसायनों के परिवहन का करार हो चुका है। लेकिन पीथमपुर में रामकी कंपनी के इंसीनरेटर को यह रसायन इसलिए नहीं पहुंचाया गया कि वहां लोग इसके खिलाफ हैं। गैस पीड़ित संगठन की कार्यकर्ता रचना ढींगरा का कहना है कि डाव कैमिकल्स को भी यूका की तरह बचाने का प्रयास किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि इस कंपनी के खिलाफ गैस पीड़ितों के अलावा मानव अधिकार वादी संगठन तो कोर्ट गए लेकिन केंद्र और राज्य सरकार नहीं गई। विगत पांच साल से डाव कैमिकल्स का अदालत में पेश होने का मामला लंबित है। रचना का कहना है कि इस कंपनी ने अपने तीन संयंत्र चैन्नई, मुंबई और पुणे में कायम किए जिनमें घातक रसायन तैयार हो रहे हैं। पुणे संयंत्र के लिए कंपनी ने भारतीय अधिकारियों को मोटी रिश्वत दी। इस बात की जानकारी सामने आने पर अमेरिका ने तो कंपनी के खिलाफ 3 मिलियन डालर का जुर्माना लगाया। जबकि भारत सरकार ने सांसद वृन्दा करात के जवाब में सीबीआई जांच की बात मानी और 2009 में यह जांच भी पूरी हो गई लेकिन न तो दोषी अधिकारियों और न कंपनी के खिलाफ कार्यवाही की गई। आज स्थिति यह है कि डाव कैमिकल्स कार्बाइड की गलतियों से अलग है और इसके खिलाफ किसी भी तरह का मामला नहीं बनाया गया।

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