ज्यों-ज्यों नजदीक आ रही है, उम्मीदवारों ने मतदाताओं को लुभाने का अभियान तेज कर दिया है। आकलन के मुताबिक लोकसभा चुनाव में सबसे अधिक मत झुग्गियों (स्लम) वाले इलाके से हासिल होते हैं। परिसीमन के बाद इन इलाकों के मतदाताओं की संख्या में और भी इजाफा हुआ है। बांदा और कोलाबा इलाकों में स्लम इलाकों के मतदाताओं की संख्या में काफी बढ़ोतरी हुई है।
महानगर के उत्तर-मध्य इलाके के अंतर्गत आने वाले बांदा में 74 प्रतिशत मतदाता स्लम में रहते हैं जबकि पिछले चुनाव के दौरान यह संख्या 56 प्रतिशत थी। कोलाबा में पहले यह संख्या 14 प्रतिशत थी और अब यह संख्या 27 प्रतिशत पहुंच गई है। डेमोग्राफिक आकलन से मुम्बई के ये लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र दर्शा रहे हैं कि दो-तिहाई मतदाता स्लम के होंगे। मतदाताओं का यह बड़ा वर्ग उम्मीदवारों का भविष्य तय करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।
इसके बावजूद चुनाव जीतने के बाद नेता इन इलाकों की अनदेखी करते रहे हैं। संसद भवन का रास्ता नापने के बाद नेता इन इलाकों के विकास कामों में रुचि नहीं लेते। झुग्गी-झोपडि़यों की समस्याओं को दूर करने के लिए काम करने वाली एक गैर-सरकारी संस्था अवाम के सदस्य हसन कमाल के मुताबिक मतदाताओं का बड़ा वर्ग होने के बावजूद नेता इन इलाकों का जीवन स्तर सुधारने की दिशा में कोई काम नहीं करते हैं। भारतीय जनसांख्यिकी आंकड़े के मुताबिक मुम्बई की 11.9 मिलियन आबादी में से 6.4 मिलियन झुग्गियों में रहते हैं। इसका अर्थ है कि 54.06 प्रतिशत मतदाता झुग्गियों में रहते हैं। टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेस के प्रो. डी.पी. सिंह के मुताबिक राजनीतिक दलों के नेता पूरे महानगर के लिए विकास का खाका खींचने की बजाए केवल खास वोट बैंक को ही ध्यान में रखते हैं।
इसके बावजूद चुनाव जीतने के बाद नेता इन इलाकों की अनदेखी करते रहे हैं। संसद भवन का रास्ता नापने के बाद नेता इन इलाकों के विकास कामों में रुचि नहीं लेते। झुग्गी-झोपडि़यों की समस्याओं को दूर करने के लिए काम करने वाली एक गैर-सरकारी संस्था अवाम के सदस्य हसन कमाल के मुताबिक मतदाताओं का बड़ा वर्ग होने के बावजूद नेता इन इलाकों का जीवन स्तर सुधारने की दिशा में कोई काम नहीं करते हैं। भारतीय जनसांख्यिकी आंकड़े के मुताबिक मुम्बई की 11.9 मिलियन आबादी में से 6.4 मिलियन झुग्गियों में रहते हैं। इसका अर्थ है कि 54.06 प्रतिशत मतदाता झुग्गियों में रहते हैं। टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेस के प्रो. डी.पी. सिंह के मुताबिक राजनीतिक दलों के नेता पूरे महानगर के लिए विकास का खाका खींचने की बजाए केवल खास वोट बैंक को ही ध्यान में रखते हैं।
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